ये नया साल उस नए साल जैसा क्यों नहीं है?
वली सिद्दीकी
कुछ देर बाद साल बदल जायेगा, लोग नया साल – नया साल बोल के खुश होंगे क्योंकि उन्हें खुश होने का बहाना चाहिए। इसमें से कुछ ऐसे भी होंगे जो नया साल के नाम से चिढ़ते हैं। वो तर्क देते हैं ये हमारी संस्कृति के खिलाफ है।
अब जो भी हो लेकिन नया साल तो नया साल ही है। लेकिन हमसे कोई पूछे तो हम बताएं कि ये नया साल तो कुछ भी नही है। नया साल होता था हम सब के बचपन में, जब ये फ़ेसबुक और व्हाट्सएप का जमाना नही था। हाथ से बनाये ग्रीटिंग कार्ड और 50 पैसे में मिलने वाले सलमान खान और माधुरी दीक्षित के फोटो के पीछे जबरदस्त वाली शायरी लिख कर जो हम दोस्तो को भजेते थे न वो होता था नया साल। अब के जैसे पार्टी नही होती थी न ये व्हाट्सअप और फसबूक वाले इरिटीएट करने वाले मैसेज। तब बस इस बात का खौफ रहता की कही मास्टर साहब ग्रीटिंगवा न देख जाए वरना कूटा जायेंगें। नया साल होते ही सुबह साईकल लेकर निकल जाते थे दोस्तो के घर कार्ड बांटने। शाम तक गिनती होती थी किसे सबसे ज्यादा कार्ड मिले, किसे सबसे अच्छे फ़ोटो वाले कार्ड मिले। ये भी हिसाब होता था को किस फ्रेंड ने बदले में कार्ड नही दिया उसे अगले साल कार्ड न देने का प्रण लिया जाता था।