संदीप त्रिपाठी
गोरखपुर। लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं उत्तर प्रदेश में जिस उम्मीद के साथ बुआ और बबुआ का गठबंधन हुआ था उत्तर प्रदेश की जनता ने उसे खारिज कर दिया इसके पहले राज्य विधानसभा के चुनाव में यूपी के वह दो लड़कों का फार्मूला तो पहले ही खारिज हो चुका था लेकिन इस चुनाव में बसपा से गठबंधन कर अखिलेश यादव ने रही सही इज्जत को भी पलीता लगा दिया।
उप चुनाव का मुद्दा बनाकर पूरे प्रदेश में बसपा से गठबंधन करने वाले अखिलेश यह भूल गए कि उत्तर प्रदेश की राजनीति सिर्फ पिछड़ों पर नहीं टिकी है अपने घोषणा पत्र में यादवों के लिए लोकलुभावन वादे करने वाले अखिलेश शायद यह भूल गए कि उनकी पार्टी की बुनियाद राम मनोहर लोहिया जनेश्वर मिश्र व मोहन सिंह के द्वारा रखी गई थी सवर्णों के खिलाफ टैक्स की बात करके उन्होंने एक बड़ी वोट बैंक को अपने हाथ से निकलने का मौका दे दिया पिछले चुनाव के मुकाबले 4% वोट की कमी समाजवादी पार्टी को इस चुनाव में हासिल हुई है तो बहुजन समाज पार्टी ने पिछले चुनाव के मुकाबले अपनी सीटों की संख्या दहाई के अंकों में पहुंचाने में सफल हुई वही वोट प्रतिशत में कोई कमी नही होने दी जो इस बात की ओर इशारा करता है कि यादव समाज के बाद अन्य समाज ने बबुआ को खारिज कर दिया।
उपचुनाव में गोरखपुर की सीट का मुद्दा मंच से अखिलेश यादव ने जोर-शोर से उठाया हर रैली में यह सुनने को मिलता था कि मुख्यमंत्री अपनी सीट नहीं बचा पाए वहीं इस बार खुद उनकी पत्नी डिंपल यादव व चचेरे भाई अक्षय यादव व धर्मेंद्र यादव चुनाव हार गए तो नेताजी के जीत का अंतर पिछले चुनाव से कम हो गया कहीं न कहीं इस बात की ओर इशारा करता है उत्तर प्रदेश में जाति और धर्म की राजनीति अपने अंतिम पड़ाव की ओर खिसक चुकी है।