गोरखपुर जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब द्वारा आयोजित की गयी मंथन कार्यक्रम की चारों तरफ हुई सराहना

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आयुष द्विवेदी/ नीतीश गुप्ता, गोरखपुर। जर्नलिस्ट्स प्रेस क्लब गोरखपुर के बैनर तले नेपाल क्लब में सहित्य, कला, संस्कृति और पत्रकारिता पर बीते 19 और 20 दिसंबर को दो दिवसीय विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। इसकी शुरुआत 19 दिसंबर को सुबह 10 बजे की गयी. जिसमें विभिन्न क्षेत्रों से जानी मानी हस्तियां शामिल हुई. मंथन के प्रथम दिन उद्घाटन सत्र में ‘आधुनिक विश्व में सनातन संस्कृति और राष्ट्रवाद’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया.

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जिसमें बतौर मुख्य अतिथि पूर्व वित्त राज्य मंत्री राज्य सभा सदस्य शिव प्रताप शुक्ला शामिल हुए. कार्यक्रम की अध्यक्षता मगध विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेंद्र प्रसाद ने किया. मुख्य वक्ता के रूप में राष्ट्रीय इतिहास लेखन संगठन के सचिव डॉ बालमुकुंद पांडेय, विशिष्ट अतिथि के रूप में भारत अध्ययन केंद्र वाराणसी के अध्यक्ष डॉ राकेश उपाध्याय मौजूद रहे. दो दिवसीय संगोष्ठी ‘‘मंथन’’ के दूसरे दिन के पहले सत्र में साहित्य, संस्कृति और बौद्धिकता विषय पर परिचर्चा हुई। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता व प्रख्यात साहित्यकार प्रो. अनंत मिश्र ने विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला।

उन्होंने कहा कि धरती पर प्रेम का तत्व बनाये रखना ही साहित्य का असल मर्म है। दिल और दिल का संबंध बनाने की बुनियाद को ही साहित्य का नाम दिया गया है। संगोष्ठी में वरिष्ठ पत्रकार डॉ. एसपी त्रिपाठी, सुजीत पांडेय और डॉ. शैलेंद्र मणि त्रिपाठी ने भी विषय के विविध पक्षों के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये।

मुख्य वक्ता प्रो. अनंत मिश्र ने कालीदास रचित रघुवंशम महाकाव्य के एक दृष्टांत की चर्चा करते हुए साहित्य के मर्म पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पत्रकारिता शीघ्रता का साहित्य है, जबकि साहित्यकार दीर्घकाल का साहित्य लिखता है। प्रेम तत्व को ही साहित्य में प्रमुखता से स्थान मिलना चाहिए।

मुक्त चित्त के संसार से ही साहित्य का मोती प्रकट होता है। उन्होंने साहित्य के सापेक्ष विचार की तुलना करते हुए कहा कि विचार सबसे ज्यादा धोखा देने वाला तत्व है। विचार ने कुछ भी नहीं दिया है क्योंकि लोग विचार का अवलंब लेकर आचार से बचना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि साहित्य व संस्कृति के जरिये चेतना का परिष्कार होना चाहिए। अगर शुभ की सद्भावना न हो तो साहित्य और बौद्धिकता सब बाजार बन जाते हैं।

वरिष्ठ पत्रकार सुजीत पांडेय ने कहा कि सामाजिक घटनाओं को भावनाओं में उकेरना ही साहित्य है। साहित्य हर तरह से समाज से जुड़ा हुआ है। राष्ट्र नष्ट हो जाता है, व्यक्ति नष्ट हो जाता है, जबकि साहित्य कभी नष्ट नहीं होता। इसका स्वरूप बदलता रहता है।