गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक अपने कुलपति से खासे से नाराज बताए जा रहे हैं। मामला यूं है कि कोरोना के चलते सरकारी आदेश के अनुसार विश्वविद्यालय बंद है, कुछ विभागों के ऑनलाइन क्लासेज चल रहे हैं।
सरकार की गाइडलाइन में किसी भी तरह से भीड़ इकट्ठा करने पर पाबंदी है। ऐसे में कुलपति का एक फैसला शिक्षकों के रोष का वजह बना हुआ है।
पिछले दिनों कुलपति महोदय ने एक आदेश जारी करते हुए विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों को एक जगह उपस्थित होकर नए सत्र पर होने वाले कार्यक्रम में सम्मिलित होने का आदेश दिया था।

शिक्षकों का कहना है कि कोरोना के इस गंभीर काल में जहां किसी भी तरह के शारीरिक उपस्थिति वाले कार्यक्रम पर रोक लगाया गया है, व्यापक स्तर पर कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन किया जा रहा है।
ऐसे में विश्वविद्यालय के सभी शिक्षकों और कर्मचारियों को एक जगह पर इकट्ठा करना बेहद गैर जिम्मेदाराना रवैया है। इससे कईयों की जान खतरे में पड़ सकती है।
शिक्षकों का तर्क है कि यह कार्यक्रम ऑनलाइन भी किया जा सकता था जैसे कि बाकी अन्य कार्यक्रम ऑनलाइन किए जा रहे हैं, लेकिन कुलपति महोदय ने जानबूझकर शिक्षकों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ किया।
वहीं शिक्षकों में रोष की दूसरी वजह यह है कि विश्वविद्यालय के एक सदस्य (शिक्षक) की कोरोना से मृत्यु के बाद जब विश्वविद्यालय की तरफ से कोई संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई, न ही पहले से तय अनुग्रह राशि परिवार को दी गई। तब मजबूर होकर शिक्षक संघ ने कुलपति को पत्र लिखकर अनुग्रह राशि मृतक शिक्षक के परिवार को देने का आग्रह किया।
लेकिन इसके बाद भी कुलपति महोदय के तरफ से यह कहा गया कि इसके लिए मृतक शिक्षक की पत्नी को आवेदन करना होगा तभी अनुग्रह राशि पर विचार किया जाएगा।
विश्वविद्यालय शिक्षक संघ इसे लेकर खासा आक्रोशित है। विश्वविद्यालय के एक शिक्षक ने गोरखपुर लाइव से बात करते हुए कहा कि
यह तो संवेदनहीनता की पराकाष्ठा है। विश्व विद्यालय परिवार के ही 1 सदस्य का देहांत हो गया है और विश्वविद्यालय परिवार उसके साथ खड़ा होने के बजाय उससे ही पत्र मांग रहा है। ऐसा इतिहास में कभी नहीं हुआ है। विश्वविद्यालय परिवार को स्वयं परिवार के सदस्य रहे शिक्षक की विधवा के पास जाकर उनको सांत्वना देते हुए अनुग्रह राशि प्रदान करनी चाहिए थी। ऐसी ही परंपरा है, लेकिन वर्तमान कुलपति जी को इससे कोई मतलब नहीं है। उल्टे को खुद विधवा से पत्र मांग रहे हैं। विश्वविद्यालय शिक्षक संघ इससे बेहद आहत है और जल्द ही इस पर कोई ठोस कदम उठाएगा।
वहीं लॉ डिपार्टमेंट में प्रथम वर्ष के विद्यार्थियों के सेमेस्टर एग्जाम कराए जाने को लेकर भी शिक्षकों में भारी मतभेद है। छात्रों का भी कहना है कि जब पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम वर्ष की परीक्षाएं नहीं हो रही है तो फिर विश्वविद्यालय सिर्फ लॉ वालों के साथ ऐसा क्यों कर रहा है? जबकि बीसीआई ने साफ कह दिया है कि विश्वविद्यालय अपने स्तर पर निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र है।