गोरखपुर। रिपोर्ट: आयुष द्विवेदी:- उम्मीद था कि मोदी सरकार की तरफ से इस बार का बजट कुछ इस तरह का होगा जिससे देश में उत्साह का संचार हो जाएगा और विपक्ष के पास सरकार को घेरने का कोई मुद्दा ही नहीं बचेगा लेकिन हुआ ऐसा कुछ नहीं। नरेंद मोदी की सरकार की यह खूबी है कि वह कभी दबाब में नहीं आती और जो कहा और सुना जाता है उससे जुदा होकर अपने लक्ष्य के तरफ आगे बढ़ती हैं या यूं कह ले कि वह अपनी लकीर खुद बनाती है और उस लकीर को खुद मिटाकर दूसरी लकीर खींच देती हैं। आर्थिक मंदी, बेरोजगारी और निवेश में सुस्ती जैसे मुद्दों के बीच यही आशा की जा रही थी सरकार इस बार कुछ ऐसा करेगी कि विपक्ष चारो खाने चित्त हो जाएगी। लेकिन मोदी सरकार के बजट में ऐसा कुछ नहीं हुआ।
वर्तमान में हर सेक्टर को सहलाते हुए ध्यान भविष्य पर केंद्रित रहा या यूं कह ले कि हर सेक्टर जो मंदी की चपेट में है औऱ लास्ट स्टेज में कराह रही है उस पर महरम लगाकर जीवित करने वाला बजट है। यह मोदी सरकार का दूसरा कार्यकाल है। पहले कार्यकाल में उन्होने भारी भरकम आर्थिक सुधारों के साथ लोक कल्याणकारी योजनाओं पर ध्यान दिया था। सामाजिक कल्याण में तो भारी बदलाव हो चुका है और उसको आगे बढ़ाने में ध्यान दिया जा रहा है। निम्न मध्यमवर्गीय के लिए पिछली बार भी आयकर में बड़ी छूट की घोषणा हुई थी।
फिलहाल सरकार पर राजनीतिक कोई दबाब नहीं है। दिल्ली का चुनाव हो रहा है तो दूसरा चुनाव साल के अंत मे बिहार में है जहां विपक्ष बिखरा हुआ है। चुनाव राजनीतिक संघर्ष 2021 से शुरू होगी। वहीं सरकार का खजाना इसकी अनुमति नहीं देता है कि वह किसी दबाब में उसे पूरी तरह खोल दे। लिहाजा रोजगार ,कुछ हद तक आयकर को सरलीकरण तथा मुख्य रूप से महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया जा रहा है। दरअसल सरकार को यह बात पता है कि नए भारत की सोच जिसमें समाज के अंतिम व्यक्ति के पास मूलभूत सुविधा पंहुचा पाना आसान बात नहीं है और इसीलिए सरकार जोखिम नहीं उठा रही है इसीलिए सरकार कोई भी कदम फूंक फूंक कर रख रही है और सरकार उन मुद्दों पर जोर दे रही है जो बहुसंख्यक समाज को आकर्षित करे।
जैसे नागरिक संसोधन कानून, ट्रिपल तलाक और भी बहुत सारे मुद्दे। क्योंकि सरकार को पता है कि आर्थिक मंदी से तुरंत निपटना मुश्किल है और जनता का आक्रोश ना बढ़े तो इन मुद्दों को आगे बढ़ा दे रही है।