लॉकडाउन में सबसे ज्यादा परेशान हैं तो वो हैं मध्यमवर्गीय परिवारवाले

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गोरखपुर। पूरा विश्व कोरोना महामारी का दर्द झेल रहा है अपना देश भारत भी इससे अछूता नहीं है। देशभर में 24 मार्च से ही लॉकडाउन है जो जहां है वो वहीं पर रुक गया है। यातायात के हर साधन बन्द कर दिए गए हैं, देश मानों पूरी तरह सुनसान पड़ गया है और थम सा गया है। इस लॉकडाउन में सबसे ज्यादा परेशान गरीब लोग हैं जो रोजाना कोई काम कर के कमाते खाते थें या फिर वो जो दूसरे से मांग कर खाते थे। लेकिन इस संकट की घड़ी में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास भी सराहनीय है क्योंकि सरकार द्वारा गरीब लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था की जा रही है जिससे कोई भी भूखा ना रहे। प्रशासन हर तरीके से गरीब तबके के लोगों की हर संभव मदद कर भी रही है मगर इस संकट की घड़ी में जो परेशान है पर उसे बता नहीं पा रहा तो वो है मध्यमवर्गीय परिवार।

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असल में मध्यमवर्गीय परिवार वाले या तो अपना कोई छोटा मोटा काम कर के कमाकर खाते हैं या फिर कहीं महीने की नौकरी कर, नौकरी मतलब कुछ लोग सरकारी तो कुछ लोग प्राइवेट नौकरी कर के अपना और अपने परिवार का गुजारा करते हैं। मध्यमवर्गीय परिवार के साथ असल दिक्कत ये है कि ये जो कमाते हैं उसी में खाते हैं लेकिन इस लॉकडाउन के दिनों सरकारी नौकरी वालों को छोड़ दें तो प्राइवेट नौकरी करने वाले या छोटा मोटा दुकान कर कमा के खाने वालों के लिए अब परिवार चलाने की दिक्कत आन पड़ी है।

समाज में एक स्टेटस मेंटेन है इस कारण किसी से राशन या खाना दान या सहायता में ले नहीं सकते। रोशन (काल्पनिक नाम) एक मध्यमवर्गीय परिवार के मुखिया हैं, परिवार में कुल 4 सदस्य हैं। रोशन का शहर में ही एक छोटा सा मोबाइल शॉप है जिससे उनका खर्च चलता है लेकिन पिछले महीने जबसे लॉकडाउन लगा है दुकान बन्द है, थोड़े बहुत जो पैसे रोशन के पास थे वो भी अब खत्म होने को है। रोशन बताते है उन्हें समझ नहीं आ रहा कि अब वो क्या करेंगे।

प्रशासन या समाजसेवियों द्वारा जो मदद की जा रही है वो सराहनीय है पर उन्हें लेने में थोड़ी हिचकिचाहट है क्योंकि आसपास के लोग क्या सोचेंगे? वहीं एक मोबाइल शॉप पर काम करने वाले आकाश का कहना है कि लॉकडाउन की वजह से सब बन्द है मालिक भी क्यों ही सैलरी देगा और कहां से देगा? ऐसे ना जानें कितने ही मध्यमवर्गीय परिवार के लोग हैं जो इस समय संकट में तो हैं लेकिन उसे किसी के सामने बयां नहीं कर पा रहें।

उन्हें इस बात का भी डर है कि अब जब सब ठीक हो जाएगा तो फिर वापस पटरी पर आने में कितना समय लगेगा क्योंकि चीजे तो सही हो जाएंगी मगर खर्च पहले जैसे ही रहेगा। इसीलिए उन्हें उम्मीद है कि सरकार कुछ न कुछ इस वर्ग के लोगों के लिए भी सोचेगी।