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कभी बीजेपी का गढ़ हुआ करता था ‘गोरखपुर’ आज प्रत्याशी तलाशने में जुटी है पार्टी

आयुष द्विवेदी
गोरखपुर

एक समय था बीजेपी के खिलाफ गोरखपुर में कोई दूसरे दल का बड़ा नेता लड़ने को तैयार नहीं होता था। अगर होता भी था तो हार जीत की मार्जिन ज्यादा की होती थी। मतलब यह कि कैरियर की शुरुवात गोरखपुर से कोई भी नहीं करना चाहता था कारण यह कि 1989 से यह सीट बीजेपी के पास थी। एक या दो चुनाव छोड़ दे तो विपक्षी ज्यादा वोटों से धराशाही होते थे। पत्रकार औऱ राजनीतिक विश्लेषक यह चर्चा करते थे वोटों की बढ़त कितनी की होगी। लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव में बीजेपी का यह गुरुर टूट गया और उन्हें करारी हार मिली। लेकिन यहां समझने वाली बात होगी कि यहां हार के कई कारण थे बीजेपी को लगता था यहां से जो भी बीजेपी से कैंडिडेट होगा वह जीत जाएगा दूसरा कारण यह कि बीजेपी एक बड़े वोट बैंक की अनदेखी कर रही थी। निषाद बाहुल्य गोरखपुर में निषाद पार्टी धीरे धीरे अपनी जमीन तैयार कर रही थी और बीजेपी इससे बेखबर थी या यूँ कहें कि घमण्ड में चूर थी।

हार के कई कारण में एक और बड़ी गलती बीजेपी से 2017 के विधानसभा चुनाव में हुई जब रामभुआल निषाद ने गोरखपुर ग्रामीण से टिकट मांगा और उनका टिकट काट कर विपिन सिंह को दिया गया। यह बीजेपी की भारी चूक थी और यहीं से उपचुनाव में हार की पटकथा तैयार होनी शुरू हुई। बीजेपी भले से यह कह ले और कई रैलियों में यह कहती आयी है कि कम परसेंटेज और अति उत्साह हार की वजह बनी हुई हो लेकिन सच्चाई ये नहीं है। अब बात वर्तमान की राजनीति की करें तो तस्वीर बदल गयी है। बीजेपी के साथ कई निषाद नेता सहित वर्तमाम सांसद भी बीजेपी के रथ पर सवार हो गए है लेकिन आज परस्थिति बदल गयी है ।बीजेपी को डर सता रहा है उसके कार्यकर्ता कहीं बगावत न कर ले इसलिए बीजेपी प्रवीण को प्रत्याशी घोषित करने से परहेज कर रही है। 1989 से से यह सीट उपचुनाव को छोड़ दे तो बीजेपी के पास थी लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दूसरे पंक्ति के नेता नही तैयार कर पाए। अब आगे जो भी हो लेकिन बीजेपी के टिकट में देरी यह बता रही है कि एक समय विपक्ष से बीजेपी के खिलाफ जो भी उतरता उसको हमेशा हार का खतरा रहता था आज वही हाल बीजेपी की हो गयी है।

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