कभी बीजेपी का गढ़ हुआ करता था ‘गोरखपुर’ आज प्रत्याशी तलाशने में जुटी है पार्टी
आयुष द्विवेदी
गोरखपुर
एक समय था बीजेपी के खिलाफ गोरखपुर में कोई दूसरे दल का बड़ा नेता लड़ने को तैयार नहीं होता था। अगर होता भी था तो हार जीत की मार्जिन ज्यादा की होती थी। मतलब यह कि कैरियर की शुरुवात गोरखपुर से कोई भी नहीं करना चाहता था कारण यह कि 1989 से यह सीट बीजेपी के पास थी। एक या दो चुनाव छोड़ दे तो विपक्षी ज्यादा वोटों से धराशाही होते थे। पत्रकार औऱ राजनीतिक विश्लेषक यह चर्चा करते थे वोटों की बढ़त कितनी की होगी। लेकिन योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद उपचुनाव में बीजेपी का यह गुरुर टूट गया और उन्हें करारी हार मिली। लेकिन यहां समझने वाली बात होगी कि यहां हार के कई कारण थे बीजेपी को लगता था यहां से जो भी बीजेपी से कैंडिडेट होगा वह जीत जाएगा दूसरा कारण यह कि बीजेपी एक बड़े वोट बैंक की अनदेखी कर रही थी। निषाद बाहुल्य गोरखपुर में निषाद पार्टी धीरे धीरे अपनी जमीन तैयार कर रही थी और बीजेपी इससे बेखबर थी या यूँ कहें कि घमण्ड में चूर थी।