आयुष द्विवेदी।
लोकसभा चुनाव को लेकर यूपी की राजनीतिक तापमान अपने चरम पर है। एक लोकसभा में कई उम्मीदवारो की दावेदारी पार्टी आलाकमान के लिए परेशानी का सबब बन रही है। बात संभावित महागठबंधन की करे तो सीटों को लेकर घमासान मचा हुआ है तो वही सपा और बसपा कांग्रेस को ज्यादा सीट देने को तैयार नही दिख रही है। अब यह 14 जनवरी को बसपा सुप्रीमो मायावती के जन्मदिन पर तय होगा कि कांग्रेस गठबंधन हिस्सा रहेगी या नही। लेकिन दोनों पार्टीयों के रुख से यही लग रहा है कि वह कांग्रेस पार्टी को गठबंधन का हिस्सा नही बनाना चाहती है।
कांग्रेस पार्टी भी इस रुख को पहले ही भांप गयी है औऱ उसने भी एकला चलो वाली पालिसी अपना ली है। और भी क्यो ना आम चुनाव से पहले कांग्रेस पार्टी 3 राज्यो को फतह करके उत्साहित है। उसका मानना है कि आम चुनाव राष्ट्रीय मुद्दों पर लड़ा जाता है और इस नजरिए से कांग्रेस पार्टी यूपी में ज्यादा सीट चाहती थी लेकिन इन दोनों पार्टी के रुख के बाद कांग्रेस अपने दम पर चुनाव लड़ना चाहती है। देश मे सरकार बनाने के लिए कांग्रेस को सबसे ज्यादा सांसद चाहिए और दिल्ली की राजनीति कही ना कही यूपी से होकर गुजरती है। कांग्रेस कत्तई नही चाहती है कि उसके सांसद कम हो और उसके सहयोगी या देश मे तीसरे मोर्चे के दखल हो और वह दबाब में काम करे इसीलिए वह नही चाहती कि क्षेत्रीय दलों के सहारे वह अपनी राजनैतिक बैतरनी पार करे और आगे वह दबाब झेले। कारण यह कि मोदी लहर में कांग्रेस पार्टी के कई दिग्गज नेता ढेर हो गए थे लेकिन आज ना कोई मोदी मैजिक है और ना ही कांग्रेस के खिलाफ लहर।
ये तो हुई दिल्ली बात लेकिन अगर हम बात यूपी की पडरौना संसदीय सीट की करे तो यहाँ कांग्रेस के आरपीएन सिंह पलड़ा भारी है। पडरौना की बात हम सिर्फ इसलिए यहाँ कर रहे है कि राहुल सोनिया के बाद सबसे ज्यादा वोट आरपीएन सिंह को ही मिला था। यह अलग बात है कि वह मोदी लहर में चुनाव हार गए थे। लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि 2009 के आम चुनाव में वह इससे कम वोट पाकर सांसद बन गए थे। इसका मुख्य वजह यह था कि सपा को और बसपा का मूल वोट इन दोनों पार्टीयों में ना जाकर बीजेपी में चला गया था। मोदी लहर में कांग्रेस के कई दिग्गज नेता अपनी जमानत तक नही बचा पाए थे लोगो के मन मे कांग्रेस पार्टी के प्रति गुस्सा था। तो कई जगह मोदी लहर में धराशाही हो गए इसीलिए देश मे सीटों के लिए लिहाज से देश का सबसे बड़ा प्रदेश है। उत्तर प्रदेश और कांग्रेस यह चाहती है कि 2014 के मुकाबले यहां ज्यादा सीट निकल सकता है और पार्टी के कई दिग्गज अपने दम पर चुनाव जीत सकते है क्योंकि अब ना तो पार्टी के प्रति लोगो का गुस्सा है और ना ही कोई वजह। इसीलिए पार्टी कम से कम उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ने की राजनीति तैयार करने में जुटी है ।