2018 का वो दौर याद करिये जब गोरखपुर में उपचुनाव हुए थे और गठबंधन की तरफ से समाजवादी पार्टी ने एक अंजान चेहरा प्रवीण निषाद को जनता के बीच लाया और जनता ने भी उपचुनाव में चेहरे पर नहीं बल्कि पार्टी पर विश्वास कर प्रवीण को ऐतिहासिक जीत दिलाई। योगी आदित्यनाथ की सीट पर जीत दर्ज कर पाना आसान नहीं था पर फिर भी जनता ने समाजवादी पार्टी और प्रवीण निषाद पर भरोसा कर उन्हें जीत दिलाई।
लेकिन अपने कार्यकाल में सांसद बने प्रवीण निषाद ने गोरखपुर के लिए शायद ही कोई काम किया और काम नहीं कर पाने का आरोप प्रवीण निषाद बड़ी ही चालाकी से बीजेपी पर मढ़ दिया। लेकिन कहते है जनता सब देखती है और शायद इसका अंदाजा प्रवीण निषाद और उनके पिता संजय निषाद को हो गया था तभी तो लोकसभा चुनाव से ठीक कुछ दिन पहले ही पाला बदल कभी बीजेपी को अपना दुश्मन बताने वाले का साथ पकड़ लिया।
यही नहीं बीजेपी में शामिल भी पूरे शर्तों के साथ हुए है बाप बेटे और पूरी निषाद पार्टी। संजय निषाद को ये आस थी कि बीजेपी उनके बेटे प्रवीण निषाद को गोरखपुर सीट से ही मैदान में उतारेगी पर बीजेपी ने प्रवीण निषाद की मौजूदा सीट काटकर गोरखपुर छोड़ उन्हें सन्तकबीरनगर से मैदान में उतार दिया। अब चुनाव का मामला था तो शायद प्रवीण निषाद और संजय निषाद ने जो सीट मिला उसी सीट से लड़ना उचित समझा। बात गोरखपुर की करें तो यहां निषाद जाति के लोगों की संख्या लगभग 4 लाख से ज्यादा है तो वहीं सन्तकबीरनगर में ये आंकड़ा ढाई लाख के करीब है। पर अब सवाल उठता है कि क्या कल तक निषाद समाज के साथ मिलकर बीजेपी को कोसने वाले संजय निषाद और बेटे प्रवीण निषाद अब बीजेपी में शामिल होने के बाद अपने समाज में क्या संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं?
क्या निषाद समाज के लोग बीजेपी के साथ जाने को तैयार है? क्या सन्तकबीरनगर में प्रवीण निषाद को अपने समाज के लोगों का समर्थन मिलेगा? क्या निषाद समाज के साथ धोखा नहीं हुआ? खैर ऐसे तमाम सवाल है जो संजय निषाद और प्रवीण निषाद के समक्ष खड़े होते है अब इसका जवाब क्या होगा ये तो जनता अपने मत से 19 मई को तय करेगी और 23 मई को ये पता भी चल जाएगा कि क्या निषाद समाज के लोग बीजेपी के साथ हैं या नहीं…