अविश्वास प्रस्ताव और उसका इतिहास

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विपक्षी दल सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाते हैं, लोकसभा स्पीकर को प्रस्ताव को मंजूरी देने या ना देने का विशेषाधिकार है.

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क्या है नियम ?

अविश्वास प्रस्ताव के लाने के लिए लोकसभा में सुबह 10:00 बजे के पहले लिखित नोटिस देना होता है नोटिस को स्पीकर सदन के समक्ष पड़ता है अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए सदन के कम से कम 50 सदस्यों के समर्थन का जरूरत होता है, तभी स्पीकर की स्वीकृति मिल सकती है .प्रस्ताव की स्वीकृत होने के 10 दिन के भीतर इस पर चर्चा कराने का प्रावधान होता है अगर ऐसा नहीं होता है तो प्रस्ताव को विफल मान लिया जाता है. अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के बाद इस पर वोटिंग कराई जाती है अगर सरकार बहुमत साबित करने में विफल हो जाती है तो प्रधानमंत्री इस्तीफा दे देते हैं, और सरकार गिर जाती है .
संविधान में अविश्वास प्रस्ताव का कोई जिक्र नहीं है लेकिन सदन को नियम और प्रक्रिया बनाने का अधिकार है लोकसभा के नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य स्पीकर को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है.

अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास –

भारतीय संसद के इतिहास में पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जवाहरलाल नेहरु सरकार के खिलाफ अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने रखा था तब इस प्रस्ताव के पक्ष केवल 62 वोट पड़े थे, 347 विरोध में थे और सरकार चलती रही थी ,संसद में अब तक अविश्वास प्रस्ताव 26 बार आ चुका है मोरारजी देसाई की सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे पहले प्रस्ताव के दौरान विपक्षी दलों के आपस में मतभेद के कारण पारित नहीं हो सका था ।दूसरी बार हार का अंदाजा होने पर मोरारजी देसाई खुद ही इस्तीफा दे दिए थे ।
वही इंदिरा गांधी सरकार ने सबसे ज्यादा 15 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है ।
अटल बिहारी बाजपेई की सरकार ने दो बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया है और वही सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव रखने वाले माकपा सांसद ज्योतिमर्य बसु का रिकॉर्ड है उन्होंने इंदिरा गांधी के सरकार के खिलाफ 4 बार अविश्वास प्रस्ताव संसद में रखा था । आज यह देखना दिलचस्प होगा कि संसद में अविश्वास प्रस्ताव को लेकर क्या क्या गतिविधिया होती है , राजनेताओं की बयानबाजी फिलहाल ट्विटर पर जारी है
अभिषेक पाल गोरखपुर लाइव