योगिराज गंभीरनाथ प्रेक्षागृह में साप्ताहिक पत्रिका ध्येय मार्ग के विशेषांक “पुण्यश्लोका अहिल्या देवी होलकर” का हुआ लोकार्पण

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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने सोमवार को रामगढ़ताल स्थित योगिराज गम्भीरनाथ प्रेक्षागृह में साप्ताहिक पत्रिका ध्येय मार्ग के विशेषांक “पुण्यश्लोका अहिल्या देवी होलकर” का लोकार्पण किया।।उन्होंने संबोधित करते हुए कहा कि विश्व संवाद केंद्र का अभिनन्दन,मंगलकामनाएँ की उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर को अपना विशेषांक समर्पित किया।।हम लोकमाता के ऋणी हैं।

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वह उनके महान प्रेरक जीवन के कारण है।उनके जीवन पर अंक निकालकर आपने अभिनन्दनीय कार्य किया है।संघ ने पहली बार लोकमाता के जीवन को हमारे सम्मुख लाने का यत्न किया है।।पृष्ठभूमि में देखें तो वह एक गाँव की लड़की,विपरीत परिस्थितियों में भी जो सुशासन दिया वह अनुकरणीय है।।उनका जीवन और कार्य आज भी प्रासंगिक हैं।आज के शासन के लिए रामराज्य को आदर्श मानते हैं।

युधिष्ठिर, चाणक्य इत्यादि के शासन भी चर्चित हैं। छत्रपति शिवाजी के योग्य शासन की चर्चा भी इतिहासकारों ने की है।लोकमाता ने भी छत्रपति शिवाजी के शासन से प्रेरणा लेकर एक महान शासन दिया था।। वे एक गड़रिया परिवार में उत्पन्न हुई थीं।उनके अपने जीवन में अपने परिवार के ५ पुरुष और १८ महिलाओं की अकाल मृत्यु हुई थी। फिर भी उन्होंने महान शासन दिया था। उनके ससुर मल्हारराव का व्यक्तित्व भी स्मरणीय है, जैसे चाणक्य ने चन्द्रगुप्त को पहचाना वैसे ही मल्हारराव ने अहिल्याबाई को पहचाना और बहू बनाना निश्चित किया यह प्रेरणादायी बात थी।।
आगे उन्होंने कहा कि देश में कर्तव्य परायणता और सुशासन के विषय में कई बार चर्चा होती है।इन विषयों पर जब हम विचार करते है तो अहिल्यादेवी होलकर की एक विशेष भूमिका रही है। एक सफल सार्थक प्रेरणादायी सुशासक के रूप में उनके नाम स्वर्णिम अक्षर में भारतीय इतिहास के पन्नो में अमर हो गया।।विलासिता से दूर रहकर उन्होंने एक तपस्वी संत की भाँति कार्य किया।।सूचना लेने की व्यवस्था बनाई। दूसरे राज्यों से भी लिया दिया भी। अधिवक्ताओं की नियुक्ति की। दूसरे राज्यों को सहायता दी।धर्म विरोधी कार्य करने वालों पर कार्यवाही भी की।स्वतंत्र न्याय व्यवस्था सरल-सुलभ कर व्यवस्था दी।

उन्होंने पारदर्शिता के माध्यम से भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया।कर अधिक लेने पर वापस करने और दण्ड करने की भी व्यवस्था की थी।कार्य करके पैसे प्राप्त करने का अवसर प्रदान किया।रिजर्व फण्ड का निर्माण किया।सूचना डाक व्यवस्था का निर्माण किया।।वस्त्र उद्योग, हथकरघा बढ़ावा दिया।अहिल्याबाई ने धर्म की क्षेत्र में बहुत कार्य किए।ज्योतिर्लिंगों,धर्मस्थलो,सप्तपुरीका जीर्णोद्वारा करवाए और समुचित व्यवस्था की।।उन्होंने ये सब कार्य जनता के धन से नहीं अपने निजी धन से किया था।।राष्ट्र भक्ति के राष्ट्रीयता के समग्र भारत हमारा राष्ट्र है,आपस में भेद के कारण हम एक दूसरे से लड़ते रहेंगे तो भारत कमजोर हो जायेगा ये कहने वाली लोकमाता थी।।इसलिए भारत की एकात्मता की,सुशासन की,लोक कल्याण की,इन सारे विषयों के बारे में सोचने और कार्य करने वाली लोकमाता अहिल्यादेवी प्रातः स्मरणीय है।।सदा प्रीणादायी प्रजावत्सलामाता है उनके स्मृति पर आप सबकी ओर से शत शत अभिवादन और उनकी प्रेरणा से आने वाली पीढ़ियों में सुशासन,धर्म परायण के समाज के उन्नति के लिए कार्य करने की प्रेरणा सदैव जागृत रहे यही कामना करता हु।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही कुलपति गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रो. पूनम टंडन ने कहा कि मध्य प्रदेश के इंदौर के होलकर राज्य की महारानी अहिल्याबाई होलकर भारतीय इतिहास में एक ऐसी प्रसिद्ध महिला शासिका रही जिनके लोककल्याणकारी शासन और उनके कार्यों ने उन्हें देवी और लोकमाता के रूप में याद किया जाता है। वे एक कर्तव्यनिष्ठ,कर्मनिष्ठ, कुशल प्रशासिका, तथा भारतवर्ष को एक एवं अखंड मानकर राजनीतिक,आर्थिक, सामाजिक तथा धार्मिक प्रबंधन करती थी।देवी अहिल्याबाई महिला सशक्तिकरण के लिए सदैव सजग थी।मुझेयह जानकर खुशी है कि गोरखपुर का विश्व संवाद केंद्र उनके 300 वीं जयंती वर्ष पर आज यह सुंदर कार्यक्रम तथा विशेषांक का प्रकाशन कर समाज में उन्हें पुण्यश्लोका देवी को नमन करती हूं।

कार्यक्रम का शुभारंभ सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले,प्रांत संघचालक डॉ. महेंद्र अग्रवाल,कुलपति प्रो. पूनम टंडन ने दीप प्रज्वलन और भारत माता एवम् अहिल्या देवी होलकर जी के चित्र पर पुष्पार्चन करके किया।।तत्तपश्चात मंचासीन अथितियो ने “पुण्यश्लोका अहिल्यादेवी होलकर” विशेषांक का लोकार्पण किया।।कार्यक्रम में स्वागत व अतिथि परिचय विश्व संवाद केंद्र गोरखपुर के अध्यक्ष प्रो. ईश्वर शरण विश्वकर्मा ने और आभार ज्ञापन ध्येय मार्ग विशेषांक के संपादक प्रो. सदानंद गुप्त ने किया।।कार्यक्रम का संचालन सचिव डॉ. उमेश कुमार सिंह ने किया।।कार्यक्रम का समापन वंदेमातरम के साथ हुआ।।