तो क्या लॉकडाउन में अपने घर गए प्रवासी मजदूर अब वापस कमाने नहीं जा रहे?

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नीतीश गुप्ता, गोरखपुर। वो दिन याद करिये जब देश में कोरोना ने दस्तक दी थी जिसको देखते हुए सरकार ने पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया और फिर पूर्ण लॉकडाउन। सरकार द्वारा अचानक से लिये गए इस फैसले से देश जहां तहां थम गया। जो जहां था वहां ठहर गया। लोग जितने लॉक डाउन में परेशान हुए थे शायद ही पहले कभी हुए होंगे।

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लॉकडाउन का पहला चरण अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि सरकार ने दूसरे लॉक डाउन का ऐलान कर दिया। सरकार द्वारा दुबारा किये गए लॉक डाउन के फैसले को जहां तमाम लोग बेहतर बता रहे थे तो वहीं अधिकतर लोगों ने इसका विरोध किया क्योंकि लोग लॉक डाउन की वजह से फंस गए थे।

उनका जीवन जहां तहां रुक गया था। लॉक डाउन के कारण करोड़ो लोग घरों से दूर फंसे थे, कम्पनियां बन्द होने के कारण नौकरी चली गयी, जेब में पैसे खत्म हो गए नौबत ये हो गयी कि लोगों को खाने के लाले पड़ने लगे।

इसी बीच जब ऐलान तीसरे चरण के लॉक डाउन की हुई तो मानों देश में अलग ज्वार उठ गया, सैकड़ों किलोमीटर दूर फंसे लोगों ने जबरई घरों की ओर रुख करना शुरू कर दिया। सरकार के तमाम अपीलों के बाद भी लोगों ने एक नहीं सुनी और निकल पड़े थे अपने घरों की ओर।

दिल्ली, बम्बई, हैदराबाद और ना जाने कहाँ कहाँ से लोगों ने खास कर मजदूर वर्ग के लोगों ने अपने घरों की ओर पैदल या ट्रकों में लदकर कूच किया। सड़कों पर कड़ी तपती धूप में पैदल चलते प्रवासी मजदूरों और उनके परिवार को जिसने भी देखा उनकी आंखें भर आयी।

कंधों पर बड़े बड़े बोरे, गोदी में छोटे बच्चे, और पैदल चलती माताओं की आंखों से बहता आंसू ये सब दर्शा रहा था कि आजादी के बाद ये सबसे बड़ा पलायन था।