डीडीयू विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग में विधि विधान से मनाया गया सरस्वती पूजन

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गोरखपुर। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में माँ सरस्वती पूजा का आयोजन मंगलवार को प्राचीन इतिहास विभाग में विधि विधान पूर्वक किया गया।

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मुख्य अतिथि के रूप में कुलपति प्रो राजेश सिंह ने विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री का अनुष्ठान किया। इस दौरान पूरा परिसर माँ सरस्वती के जयकारों से गूंज उठा।

विभाग में पिछले 38 वर्षों से मां सरस्वती की पूजा का आयोजन विद्यार्थियों की ओर से किया जाता है। पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो विश्ववंभर शरण पाठक ने विभाग का नया भवन मिलने पर वर्ष 1982 में इस परंपरा का शुभारंभ किया।

इस अवसर पर कुलपति जी ने कहा कि 21वीं सदी ज्ञान की शताब्दी है। माँ सरस्वती ज्ञान, कला और संगीत की अधिष्ठात्री हैं।

सरस्वती पूजन का यह आयोजन यह दर्शाता है कि हम भारतीय ज्ञान से कितना प्यार करते हैं।

उन्होंने कहा कि काशी विश्वविद्यालय में भी मां सरस्वती का पूजन होता है। मगर जितनी विधिवत पूजा और आयोजन डीडीयू गोरखपुर विश्वविद्यालय में हुई है उतनी वहां भी नहीं होती।

उन्होंने प्राचीन इतिहास विभाग को आगे भी इस परंपरा का निर्वहन और भी बेहतर तरीके से करने के लिए प्रेरित किया।

विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शीतला प्रसाद ने कहा बसंत पंचमी को मां सरस्वती के जन्मदिवस के रूप में मनाया जाता है।

कुलपति जी के मार्गदर्शन में विवि प्रगति पथ पर अग्रसर है विभाग को मिली सेंटर ऑफ एक्सीलेंस की सौगात का श्रेय अभी कुलपति जी को जाता है।

इस मौके पर पहली बार विभाग में आगमन पर विभागाध्यक्ष प्रो शीतला प्रसाद ने मुख्य अतिथि कुलपति जी को अंग वस्त्र और स्मृति चिन्ह प्रदान किया।

संचालन डॉ ध्यानेन्द्र नारायण दुबे ने किया। इस अवसर पर पूर्व आचार्य प्रो जयमल राय को भी कुलपति जी ने अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।

चीफ प्रॉक्टर प्रो. सतीश चंद्र पांडेय, अधिष्ठाता छात्र कल्याण प्रो अजय सिंह, प्रोफेसर राजवंत रॉव, प्रो अनिल राय, प्रो हर्ष कुमार सिन्हा, प्रो रविशंकर सिंह, प्रो विनोद सिंह, प्रो डीएन यादव, प्रो उमेश त्रिपाठी, प्रो शरद मिश्र, प्रो अजय शुक्ला, डॉ सुधाकर लाल श्रीवास्तव मीडिया एवं जनसंपर्क अधिकारी महेंद्र कुमार सिंह, विभाग के समस्त शिक्षकगण और छात्र-छात्राये आदि मौजूद रहे।

चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियो को किया सम्मानित

बसंत पंचमी के अवसर पर प्राचीन इतिहास विभाग की परंपरा के अनुसार चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को अंग वस्त्र देकर सम्मानित किया।