गोरखपुर। पवित्र महीना रमजान का दूसरा अशरा आज से शुरू हो गया है। रमजान का दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का अशरा कहा जाता है। इसमें सभी रोजेदार, अल्लाह की इबादत कर अल्लाह से अपनी गुनाहों की मगफिरत के लिए दुआ करते हैं।
आपको बताने की रमजान मुसलमानों का सबसे पवित्र महीना होता है। पूरे दिन 30 दिन तक चलने वाले रमजान में सभी मुसलमान (अस्वस्थ, बच्चों और बुजुर्गों को छोड़कर) 30/29 (चांद के हिसाब से) दिनों का रोजा रखते हैं।
पूरे रमजान को 10 -10 दिन के तीन हिस्से यानी अशरे में बांटा गया है। इन तीनों अशरों को अलग अलग तरह की इबादत के लिए जाना जाता है।
पहला अशरा रहमत का
रमजान महीने के पहले अशरा यानी पहले 10 दिन को ‛रहमत का अशरा’ कहा जाता है। यानी इन 10 दिनों में मुसलमान अल्लाह की इबादत करते हुए उनसे रहमत की दुआ मांगते हैं।
दूसरा अशरा मगफिरत का
रमजान का दूसरा अशरा यानी कि 11 से 20 रमजान तक का अशरा मगफिरत का होता है। इस दरमियान मुसलमान अल्लाह से इबादत करते हुए अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं। मुसलमानों को यकीन है कि अल्लाह सच्चे दिल से माफी मांगने पर जरूर माफ कर देता है।
तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का
रमजान का तीसरा अशरा जहन्नुम से निजात का अशरा होता है। यानी कि 21 रमजान से 29/30 रमजान तक सभी मुसलमान अल्लाह से इबादत कर अपने को जहन्नम की आग से बचाने की दुआ करते हैं। इसी तीसरे अशरे में 21, 23, 25 या 27 रमज़ान की कोई एक रात शबे कद्र की रात होती है। इस्लाम में शबे कद्र की रात का बहुत महत्व है। इस दिन अल्लाह दिल से माफी मांगने वाले को जहन्नुम की आग से बचाकर जन्नत नाजिल कर देता है।
तीसरे असली में होता है ऐतकाफ
तीसरे अशरे में कई लोग मस्जिदों में एतकाफ के लिए बैठते हैं। एतकाफ में बैठने वाले लोग समाज से अलग होकर मस्जिदों में एकांत में बैठकर 10 दिनों तक अल्लाह की इबादत करते हैं।
एतकाफ के समय कोई भी मुसलमान मस्जिद से बाहर नहीं जाता है। ना ही वह अति आवश्यक मसलों को छोड़कर किसी से बात करता है। हालांकि इस बार लॉकडाउन के वजह से मस्जिदें बंद है। इसलिए एतकाफ में बैठने का सिलसिला इस बार नहीं होगा।