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कोविड ड्यूटी पर लगे हर स्वास्थ्यकर्मी को नहीं होना होगा क्वारंटीन – सीएमओ

गोरखपुर। मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. श्रीकांत तिवारी ने समाज में फैल रही इस भ्रांति का जोरदार खंडन किया है कि पीपीई किट पहन कर आवश्यक सावधानियों के साथ कोविड-19 वार्ड में मरीज के पास जाने वाले हर स्वास्थ्यकर्मी को क्वारंटीन किया जाना आवश्यक है।

उन्होंने कहा है कि न तो ऐसा कोई दिशा-निर्देश है और न ही इस तरीके से कोरोना के प्रसार का खतरा है। जिले में बीमारी से निपटने के लिए एक पूरी टीम कार्य कर रही है जिसके अलग-अलग सदस्य को आवश्यकता पड़ने पर वार्ड में भेजा जा सकता है। जो भी मरीज के पास जाता है प्रोटोकॉल का पालन करके जाता है।

ऐसे में उससे बीमारी का खतरा नहीं और न ही उसे क्वारंटीन करने की जरूरत है। अगर कोई भी इस तरह की भ्रांति का प्रचार-प्रसार कर रहा है तो वह दिन रात इलाज में जुटे चिकित्साकर्मियों और अन्य लोगों के प्रति समाज में भेदभाव को बढ़ावा दे रहा है।

उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सिर्फ उन चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों को क्वांरटीन करने का दिशा-निर्देश है जो लगातार मरीज के क्लोज कांटैक्ट में रह कर उसका इलाज करते हैं।

सीएमओ ने बताया कि कोरोना की सैंपलिंग करने वाले लैब टेक्निशियंस (एलटी) और उनको ट्रांसपोर्ट करने वाले एंबुलेंसकर्मियों की टीम रोजाना पीपीई किट पहन कर और आवश्यक सावधानियों के साथ मरीज के निकट जाकर कार्य करती है, लेकिन इस टीम को क्वारंटीन करने की आवश्यकता नहीं है। वह जितने देरी के लिए मरीज के संपर्क में आते भी हैं, उतनी देर पीपीई किट, ग्लब्स ई. से लैस रहते हैं।

अगर भ्रांतियों के प्रसार के कारण सभी लोगों को क्वारंटीन करने का सामाजिक दबाव बनने लगे या फिर इन स्वास्थ्यकर्मियों के साथ भेदभाव होने लगे तो हालात मुश्किल हो जाएंगे।

सीएमओ ने यह भी अपील की है कि कोरोना वार्ड में जाने वाले किसी भी स्वास्थ्यकर्मी के साथ सामाजिक स्तर पर कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए क्योंकि सावधानियों के साथ कोरोना मरीज के पास जाना पूरी तरह सुरक्षित है।

अगर आवश्यकता पड़ती है तो वह स्वयं मरीज के पास जाने से नहीं कतराएंगे। अनावश्यक भय और भ्रांति के साथ डर-डर कर इलाज नहीं किया जा सकता है।

सीएमओ ने बताया अपर मुख्य चिकित्साधिकारी और क्वालिटी सेल से जुड़े लोग कोविड-19 वार्ड में दिशा-निर्देशों और प्रोटोकॉल का पालन करने के लिए जाते हैं तो यह बेहद अच्छी पहल है।

इससे इलाज में जुटे चिकित्साकर्मियों का हौसला बढ़ता है और उनमें आत्मविश्वास सृजित होता है। यह एक नजीर है, जो नितांत प्रशंसनीय है। ऐसे किसी भी स्वास्थ्यकर्मी के साथ सामाजिक भेदभाव को बढ़ावा देना कोविड-19 की लड़ाई को कमजोर बनाना है और पूरी तरह से अनुचित है। जिनको इस पर आपत्ति है उनके पास जानकारी का अभाव है।

बदलना होगा नजरिया

जिला क्वालिटी कंसल्टेंट डॉ. मुस्तफा खान का कहना है कि लोगों के बीच इस सूचना के प्रसार ने कि वह कोविड-19 वार्ड में लापरवाही के साथ गये थे जिससे कोरोना के प्रसार का खतरा है, इससे उनके कार्य पर प्रश्नचिन्ह लगा है। इससे उनके जैसे सभी स्वास्थ्यकर्मियों का मनोबल कमजोर होता है।

वार्ड में अपनी ड्यूटी निभाना कहीं से गलत नहीं है और न ही यह लापरवाही है। उन्होंने बताया कि एसीएमओ आरसीएच डॉ. नंद कुमार के अलावा उनके वार्ड में जाने से यह फायदा हुआ है कि चिकित्सकों और स्टॉफ का मनोबल बढ़ा और वह मरीज के पास अब अपेक्षाकृत अधिक आत्मविश्वास के साथ जाते हैं।

उन्होंने यह भी बताया कि वह जिन लोगों के निकट संपर्क में रहे हैं उनमें से कई लोगों की कोरोना रिपोर्ट निगेटिव आ चुकी है।

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