LNJP अस्पताल की लचर व्यवस्थाओं ने लील ली 65 वर्षीय राजेंद्र शर्मा की जिंदगी

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दिल्ली। देशभर में कोरोना का कहर जारी है, लोग परेशान हैं और एक आस लगाए बैठे हैं कि शासन प्रशासन और डॉक्टर्स इस संकट की घड़ी में उनका साथ देंगे। लेकिन सोचिए अगर खुद ये लोग ही किसी के मौत का कारण बन जाएं तो फिर समाज में इसका क्या सन्देश जाएगा? मामला 28 मई का है जब दिल्ली के मंडावली के रहने वाले राजेंद्र शर्मा की तबियत अचानक खराब हो गयी जिसके बाद उनके बेटे शैलेन्द्र शर्मा ने उनका कोरोना टेस्ट कराया। टेस्ट का परिणाम आया और वही हुआ जिसका डर था, शैलेंद्र के पिता का कोरोना टेस्ट पॉजिटिव आया। इसके बाद भी शैलेन्द्र डरे या परेशान नहीं हुए क्योंकि उनको यकीन था कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार और हॉस्पिटल में बैठे भगवान स्वरूप डॉक्टर साहब लोग उनके पिता को ठीक कर वापस घर भेज देंगे।

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इसी भरोसे के चलते शैलेंद्र ने कोविड अधिकारी को सूचित किया कि साहब मेरे पिता जी कोरोना पॉजिटिव हैं जिसके कुछ देर बाद एम्बुलेंस आयी और राजेंद्र शर्मा को ले जाकर मंडोली में क्वारंटाइन कर दिया। क्वारंटाइन सेंटर से शैलेंद्र के पिता ने फोन कर स्थिति से अवगत कराया और बताया कि यहां की बदइंतजामी की वजह से मैं और बीमार पड़ जाऊंगा, ना खाने को खाना मिलता है ना ही पीने को पानी।

पिता की बात सुनकर शैलेंद्र परेशान हो गए और इसकी शिकायत उन्होंने मुख्यमंत्री केजरीवाल से लेकर उपमुख्यमंत्री सिसोदिया तक की मगर उनकी किसी ने नहीं सुनी। क्वारंटाइन सेंटर में राजेंद्र शर्मा की तबियत जब ज्यादा बिगड़ी तो आनन फानन में उन्हें LNJP अस्पताल के किसी वार्ड में भर्ती कर दिया गया। 6 जून को शैलेंद्र शर्मा को उनके पिता ने अस्पताल से फोन किया और स्थिति से अवगत कराते हुए बताया कि उन्हें एलएनजेपी अस्पताल में भर्ती कर दिया गया है।

इसके बाद शैलेंद्र रोजाना फोन पर अपने पिता का हाल चाल पूछते रहे क्योंकि उन्हें अस्पताल जाने की इजाजत नहीं थी। शैलेंद्र ने बताया कि 6 जून को वार्ड 1, कोविड वार्ड में उनके पिता को भर्ती किया गया। इसके बाद शैलेन्द्र ने अस्पताल प्रशासन से पिता का हाल जाना तो पता चला वो ठीक है और वार्ड में एडमिट हैं। लेकिन पिता ने फोन कर जो बात बताई वो पूरी तरह से अस्पताल प्रशासन द्वारा बताई गई बातों से विपरीत था।

शैलेन्द्र ने बताया कि उनके पिता ने उनको फोन कर बताया कि अस्पताल में उनका कोई ख्याल नहीं रखा जाता हैं ना ही समय पर खाना मिलता है न पानी यहां तक की कोई डॉक्टर भी जांच करने नहीं आता उन्होंने कहा मैं बहुत कमजोर हो गया हूँ मैं कोरोना से तो नहीं मरूंगा मगर ऐसी जगह रहा तो जरूर मर जाऊंगा। ये बात सुनते ही शैलेन्द्र घबरा गए चूंकि शैलेंद्र ने अपने पिता से वार्ड में भर्ती कुछ और लोगों के नम्बर ले रखे थे तो उनसे अपने पिता का हाल चाल जानते रहे।

शैलेंद्र ने बताया कि अचानक से पिता जी ने फोन उठाना बन्द कर दिया और अस्पताल प्रशासन भी जानकारी नहीं दे रहा था जिसकी वजह से वो काफी घबरा गए थे और फिर वार्ड में भर्ती एक अन्य मरीज को फोन करने पर पता चला कि उनके पिता की तबियत बहुत खराब हो गयी थी जिसके बाद उन्हें वार्ड 32 में एडमिट कराया गया है। शैलेंद्र ने बताया कि वार्ड 32 में पता किया तो पता लगा कि मेरे पिता राजेंद्र कुमार वहां भर्ती नहीं थे। पुरे एक दिन के प्रयास से बाद मुझे पता चला मेरे पिता वार्ड 29 में शिफ्ट हो गए हैं।