इंटरनेशनल विमेंस डे : 37 मरीजों को टीबी चैंपियन बना चुकी हैं आशा

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गोरखपुर। जैसा नाम, वैसा काम। इस उक्ति को चरितार्थ कर रही हैं महानगर के अलीनगर क्षेत्र में कार्य कर रहीं आशा कार्यकर्ता आशा देवी।

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45 वर्षीय आशा अपने क्षेत्र के 37 टीबी मरीजों को स्वस्थ बना चुकी हैं यानि वह मरीज अब टीबी चैंपियन बन चुके हैं।

उन मरीजों में से दो मरीज मॉस ड्रग रेसिस्टेंट (एमडीआर) भी रहे, जिनको पूरे समर्पण के साथ नौ महीने तक दवा खिलाया और अब वह भी स्वस्थ हो चुके हैं।

वर्ष 2017 से आशा कार्यकर्ता के तौर पर स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र से जुड़ीं आशा देवी शहर में टीबी की एक अच्छी ट्रिटमेंट सुपरवाईजर (डाट्स प्रोवाइडर) की पहचान रखती हैं। विभागीय लोग भी इनकी कार्यशैली के मुरीद हैं।

आशा देवी का कहना है कि टीब मरीजों की दवा पूरी हो, बीच में इलाज न छूटे और उनके सामने आने वाली दिक्कतों के प्रति उचित सलाह देनी होती है।

कुछ मरीज तो आसानी से दवा खा लेते हैं लेकिन कई मरीज दवा नहीं खाना चाहते या दवा बीच में छोड़ देते हैं।

दवा छोड़ देने से टीबी और गंभीर हो जाती है और परिवार के लोग भी उससे पीड़ित हो सकते हैं।

उनके क्षेत्र में टीबी का एक ऐसा ही एमडीआर मरीज है जिसने दवा छोड़ दी और अब उनकी बहू को भी टीबी हो चुकी है।

यही बात लोगों को समझानी होती है कि दवा बीच में नहीं छोड़ना है। उनके घर ले जाकर दवा पहुंचाते हैं।

इस दौरान मरीजों को यह भी बताया जाता है कि घर में खांसते-छींकते समय मॉस्क या कपड़े का इस्तेमाल करें। परिजनों को समझाना होता है कि टीबी मरीजों से भेदभाव नहीं करना है, बल्कि केवल सावधान रहना है।

टीबी चैंपियंस को देख कर मिलती है संतुष्टि

आशा देवी ने बताया कि नेपाल का निवासी एक टीबी मरीज उनके क्षेत्र में निकला जो कामकाज के सिलसिले में यहां आया था।

उस मरीज को उन्होंने पूरी खुराक खिलायी। स्वस्थ होने के बाद वह जब भी उनसे मिलता है सम्मान के साथ नमस्कार करता है और कहता है कि यह जीवन उन्हीं की देन है।

इस प्रकार का सम्मान पाकर और दूसरों का जीवन बचा कर आत्मसंतुष्टि मिलती है।

क्षेत्र में आकर करते हैं सहयोग

जब कोई मरीज दवा खाने के लिए तैयार नहीं होता तो उच्चाधिकारियों को भी सूचित किया जाता है।

सीनियर ट्रीटमेंट सुपरवाईजर गोविंद और मयंक आकर उनका सहयोग करते हैं। जिला क्षय रोग केंद्र के अधिकारियों का भी बेहद सहयोगात्मक व्यवहार होता है।

ऐसे ही होगा टीबी उन्मूलन

वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य आशा जैसी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के बल पर ही संभव हो पाएगा।

आशा देवी जैसी सुपरवाईजर जब एक टीबी मरीज को स्वस्थ करवा देती हैं तो उन्हें 1000 रुपये की प्रोत्साहन राशि, जबकि एमडीआर मरीज को नौ महीने तक दवा खिलवा कर स्वस्थ करवाने पर 5000 रुपये की प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। समुदाय और स्वास्थ्य कार्यकर्ता सभी के सहयोग से ही बीमारी समाप्त होगी।

निःशुल्क मिली दवा

नौ वर्षीय टीबी चैंपियन राहुल की मां लालती शर्मा ने बताया कि आशा की मदद से उनका बच्चा टीबी से स्वस्थ हो चुका। वह निःशुल्क दवा घर पहुंचाती थीं।

हमेशा बच्चे का हालचाल लेती रहीं। छह महीने लगातार दवाई चली और उनका बच्चा स्वस्थ हो गया। उनका बेटा अब पढ़ने जाता है और स्वस्थ जीवन जी रहा है।

टीबी उन्मूलन के क्षेत्र में सक्रिय योगदान देने वाले सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के प्रयास अनुकरणीय हैं। लोगों को चाहिए कि जब आशा कार्यकर्ता उनकी सेहत की चिंता के साथ उनके घर पहुंचे तो उनका भरपूर सहयोग करें। अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर अंग्रिम पंक्ति के सभी स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को ढेर सारी शुभकामनाएं।

-डॉ. सुधाकर पांडेय, मुख्य चिकित्सा अधिकारी