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कोरोना के कहर से बदलनी पड़ी हिंदू परंपरा, जलाने की जगह हजारों शव किए गए दफन

देशभर में कोरोना की दूसरी लहार तबाही मचा रखी है। घर से बाहर निकलते ही अस्पतालों से लेकर श्मशान घाटों तक के दृश्य आपके हृदय को बुरी तरह आहत कर देने वाले हैं।

कोरोना महामारी से लोगों के मरने की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। हालात ये हैं कि श्मशान घाटों पर अब चिताओं के लिए लकड़ियां कम पड़ने लगी हैं।

जिसके चलते लोग हिंदू रीति-रिवाज और परंपरा छोड़कर शवों को दफनाने के लिए मजबूर हैं। मिली जानकारी के मुताबिक गंगा किनारे घाट पर अब तक हजारों शव दफ़नायें जा चुके हैं. वो भी महज 3 फीट की गहराई में।

आपको बता दें कि कानपुर और उन्नाव के शुक्लागंज में हर दूसरे कदम पर एक शव को दफना दिया गया है. यदि आने वाले दिनों में अगर गंगा का जलस्तर थोड़ा भी बढ़ गया तो हजारों शव गंगा में उतराते दिखाई देगें।

वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि अगर इन लोगों की मौत कोरोना से हुई होगी और इनके शव नदी में बहेंगे तो इसका गंभीर असर आम लोगों पर पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि करोड़ों लोगों के घरों में गंगा का पानी जाता है

वहीं स्थानीय लोगों ने बताया कि शवों की चिता से दफन करना ज्यादा सस्ता पड़ रहा है। इसलिए लोग शवों को दफना कर चले जाते हैं।

इन लाशों को दफन करने के साथ ही कब्र में नमक भी डाल दिया जाता है। लाशों को दफन करने वाले लोग घाट किनारे मचान बनाकर बैठे रहते हैं।

अगर हम एक बार गौर करें नगर निगमों की रिपोर्ट पर तो अकेले लखनऊ और कानपुर में करीब 25 हजार क्विंटल लकड़ी खरीदी जा चुकी है।

जबकि कई संस्थानों ने निशुल्क लकड़ी भी उपलब्ध कराई हैं। लखनऊ और कानपुर को मिलाकर अप्रैल के महीने में 5,500 से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार अब तक किया जा चुका है।

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