Home राष्ट्रीय डीआरडीओ ने बनाई कोरोना की दवाई ड्रग 2-DG, क्या साबित होगा वरदान?
DRDO की एंटी कोरोना ड्रग 2-DG का 10 हजार डोज का पहला बैच सोमवार को इमरजेंसी यूज के लिए रिलीज कर दिया गया। अब इस दवा को मरीजों को दिया जा सकता है। ये दवा एक पाउडर के रूप में है। इस दवा को सबसे पहले दिल्ली के DRDO कोविड अस्पताल में भर्ती मरीजों को दिया जाएगा।
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कहा जा रहा है कि कोरोना के इलाज में 2-DG भारत में कोरोना मरीजों के लिए गेमचेंजर साबित हो सकती है। DRDO ने इस दवा को लेकर 2 दावे किए हैं और वो दोनों बहुत महत्वपूर्ण हैं।
DRDO का कहना है इस दवा से मरीजों की ऑक्सीजन पर निर्भरता कम होगी, साथ ही उन्हें ठीक होने में 2-3 दिन कम लगेंगे यानी अस्पताल से मरीजों की जल्द छुट्टी हो सकेगी।
पूरे देश को फिलहाल ऑक्सीजन और हॉस्पिटल में बेड की कमी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में ये दवा इन दोनों ही समस्याओं से निपटने में गेमचेंजर साबित हो सकती है।
तो आइए जानते हैं कि फार्मा कंपनी डॉ. रेड्डीज लैबोरेटरीज के साथ तैयार DRDO की यह दवा कैसे हमें कोरोना के खिलाफ जीत दिला सकती है।
Q. कोरोना के खिलाफ कमजोर पड़ी भारत की लड़ाई में DRDO की इस दवा को गेम चेंजर क्यों कहा जा रहा है?
A. तीसरे चरण के क्लिनिकल ट्रायल के दौरान जिन मरीजों को तय दवाओं के साथ DRDO की दवा 2-deoxy-D-glucose (2-DG) दी गई, तीसरे दिन उनमें से 42% मरीजों को ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी।
वहीं, जिन मरीजों को इलाज के तय मानक, यानी स्टैंडर्ड ऑफ केयर (SoC) के तहत दवा दी गईं, उनमें यह आंकड़ा 31% था।
ऐसे ही जिन मरीजों को 2-DG दवा दी गई उनके vital signs, यानी दिल की धड़कन (पल्स रेट), ब्लड प्रेशर, बुखार और सांस लेने की दर, बाकी मरीजों के मुकाबले औसतन 2.5 दिन पहले ही सामान्य हो गए।
दवा लेने वाले मरीजों में कोरोना के लक्षणों में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। साफ है कि ऐसे मरीजों को अस्पतालों में ज्यादा दिन रुकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 65 साल से अधिक उम्र के कोरोना मरीजों में भी यही नतीजे मिले।
इन नतीजों के बूते ही DRDO के वैज्ञानिकों का कहना है कि यह दवा न केवल ऑक्सीजन पर निर्भरता को कम करेगी बल्कि अस्पतालों में बेड की कमी को भी दूर कर सकती है। इसी वजह से 2-DG को गेम चेंजर कहा जा रहा है।
Q. कोरोना की यह दवा काम कैसे करती है? इसकी खासियत क्या है?
DRDO के इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूक्लियर मेडिसिन एंड एलाइड साइंसेज (INMAS) की लैबोरेटरी में तैयार यह दवा ग्लूकोज का ही एक सब्स्टिट्यूट है। यह संरचनात्मक रूप से ग्लूकोज की तरह है, लेकिन असल में उससे अलग है। यह पाउडर के रूप में है और पानी में मिलाकर मरीजों को दी जाती है।
कोरोना वायरस अपनी एनर्जी के लिए मरीज के शरीर से ग्लूकोज लेते हैं। वहीं यह दवा केवल संक्रमित कोशिकाओं में जमा हो जाती है। कोरोना वायरस ग्लूकोज के धोखे में इस दवा का इस्तेमाल करने लगते हैं।
इस तरह वायरस को एनर्जी मिलना बंद हो जाती है और उनका वायरल सिंथेसिस बंद हो जाता है। यानी नए वायरस बनना बंद जाते हैं और बाकी वायरस भी मर जाते हैं।
असल में यह दवा कैंसर के इलाज के लिए तैयार की जा रही थी। चूंकि यह केवल संक्रमित कोशिका में भर जाती है, इसके इस गुण के चलते केवल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को मारने की सोच से यह दवा तैयार की जा रही थी। इस दवा का इस्तेमाल कैंसर-ग्रस्त कोशिकाओं को सटीक कीमोथेरेपी देने के लिए भी इस्तेमाल करने की तैयारी है।