गोरखपुर। कोरोना वायरस पर दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में भी अब रिसर्च शुरू होगा। इसके लिए यूनिवर्सिटी ने कैंपस में वायरोलाजी लैब की स्थापना न केवल योजना बनाई है बल्कि इसका काम भी शुरू कर दिया है।
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इस लैब में वैसे तो हर तरह के वायरस पर शोध होगा लेकिन वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए कोविड वायरस के नए स्ट्रीम पर अध्ययन के साथ इसकी शुरुआत की जाएगी।
बायो टेक्नालाजी विभाग में बनेगी वायरोलाजी लैब
यह लैब विश्वविद्यालय में स्थापित होने वाले सेंटर फॉर जेनोमिक्स एंड बयो-इंफारमेटिक्स के अंतर्गत स्थापित किया जाएगा। यह सेंटर विवि के बायो टेक्नालाजी विभाग को अपग्रेड करके स्थापित किया जाएगा।
बीते दिनों विश्वविद्यालय द्वारा स्थापित वायरोलाजी सेल इस लैब के निर्माण और कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संभालेगी।
70 लाख रुपये की लागत से बनने वाली इस लैब को स्थापित करने के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने सीसीएमबी (सेंटर फार सेल्युलर एंड मालिक्यूलर बायोलाजी) हैदराबाद और आइसीएमआर (इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च) पुणे से संपर्क साधा जा रहा है।
इसके अलावा एम्स दिल्ली और बीआरडी मेडिकल कालेज के माइक्रोबायोलाजी विभाग की इसके निर्माण और उसके बाद शोध में मदद ली जाएगी।
लैब में सात वायरस विशेषज्ञों की नियुक्ति की जाएगी। साथ ही शोध के लिए चार पीएचडी स्कालरों के अलावा चार पोस्ट डाक्टर फेलोशिप के शोधार्थी पंजीकृत किए जाएंगे।
विश्वविद्यालय के बायो टेक्नालाजी, जंतु विज्ञान और वनस्पति विज्ञान के इ’छुक शोधार्थियों को भी लैब में अपनी वायरस से जुड़ी शोध प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का अवसर दिया जाएगा।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने बताया कि लैब में शोध की शुरुआत कोविड-19 के हर नई स्ट्रेन की जीनोम सिक्वेंसिंग पर अध्ययन से होगी।
इससे यह पता चला सकेगा कि नई स्ट्रेन में जीन का क्या नया सिक्वेंस हैं और पुराने स्ट्रेन से नए स्ट्रेन में कौन-कौन से बदलाव हुए हैं। उस बदलाव को जानकर ही हम फुलप्रूफ जांच और इलाज सुनिश्चित कर सकेंगे।
इस दिशा में कार्य करके ज्यादा उपयोगी वैक्सीन के निर्माण में सहायता मिलेगी। कुलपति ने बताया कि वह वह जीनोम सिक्वेंङ्क्षसग पर कई दृष्टि से शोध कर चुके हैं, ऐसे में शोधार्थियों को वह अपने शोध में मिले परिणाम के माध्यम से मदद भी करेंगे।
उन्होंने बताया कि लैब निर्माण की प्रक्रिया काफी आगे बढ़ चुकी है। इसकी स्थापना और उसमें जुड़े मानव संसाधन के लिए विश्वविद्यालय की कार्य परिषद की स्वीकृति पहले ही ली जा चुकी है।