गोरखपुर। डर के आगे जीत है का फलफसा कोविड से लड़ाई में महानगर के सूबा बाजार निवासी शिक्षक आशुतोष शुक्ल ने साबित कर दिखाया। वह होम आइसोलेशन के दौरान बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा देते रहे।
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यह विकल्प उन्होंने इसलिए चुना ताकि कोरोना का डर हावी न हो। मधुमेह की सहरूग्णता के साथ इस 36 वर्षीय युवा शिक्षक ने होम आइसोलेशन में ही कोरोना को हरा दिया। वह कोविड निगेटिव हो चुके हैं और अब पूरी तरह से स्वस्थ हैं।
आशुतोष शुक्ल सरदारनगर स्थित एक निजी विद्यालय में शिक्षक हैं। अप्रैल में नवरात्र से ठीक पहले स्कूल से लौटने पर उन्हें काफी थकावट महसूस हुई। उनका कहना है कि वह हमेशा गुनगुने पानी का सेवन करते हैं। मॉस्क और हाथों की स्वच्छता पर भी विशेष ध्यान देते हैं।
इसके बावजूद कहीं न कहीं कोई चूक हुई होगी जिसके कारण वह कोविड पॉजीटिव हुए। उन्होंने बताया कि गले में खरास, कफ आने और नवरात्र के प्रथम दिन सुगंध न आने की दिक्कत उन्हें महसूस हुई तो उनकी छोटी बहन नेहा ने कोविड जांच का सुझाव दिया। जब कोविड जांच कराया तो पॉजीटिव निकले।
उनका कहना है कि जब रिपोर्ट देखी तो पहले समझ ही नहीं आया कि अब क्या करें। मानसिक स्थिति बिल्कुल ठीक नहीं लगी। जांच के बाद जब घर पहुंचे तो घरवाले भी घबरा गये। उन्हें मधुमेह की समस्या है इसलिए घरवाले और वह खुद भी बहुत डर रहे थे।
आशुतोष का कहना है कि जब मित्रों को यह पता चला तो तमाम फोन आने लगे और सभी ने उन्हें सकारात्मक जानकारी दी और बताया कि डरने की बात नहीं है। पत्नी मायके थीं। पत्नी ने भी फोन पर मनोबल बढ़ाया।
घर के बाहर एक कमरे में आइसोलेट हो गये। सबसे आवश्यक था कि कोविड से ध्यान हटाया जाए। इसी बीच उनके स्कूल के प्रधानाचार्य बृजभूषण मिश्र ने उन्हें फोन करके अवकाश लेने का सुझाव दिया।
आशुतोष का कहना है कि अवकाश लेने पर दिन रात कोविड का ख्याल आता। इसलिए अवकाश का विकल्प न चुन कर प्रतिदिन तीन घंटे क्लास लेने के बारे में निर्णय लिया।
कक्षा आठवी, नौवीं और दसवीं के बच्चों को सामाजिक विज्ञान पढ़ाते हुए होम आइसोलेशन पूरा किया। दोबारा जांच कराया तो कोविड रिपोर्ट निगेटिव आई।
कोविड प्रोटोकॉल का पालन किया
आशुतोष का कहना है कि आइसोलेशन के दौरान कोविड प्रोटोकॉल का पालन करते रहे। कमरे से बाहर जब भी आते थ्री लेयर मॉस्क लगा कर आते। अपने कपड़े और बर्तन खुद धुलते थे।
तीन घंटे की ऑनलाइन क्लास के बाद दोस्तों से फोन पर बात करना और मोबाइल पर सकारात्मक संदेश पढ़ना उनकी दिनचर्या थी। गुनगुने पानी का सेवन करते रहे और भाप भी लिया।
बेसिक ब्लड टेस्ट भी कराया जिसमें मधुमेह का स्तर 155 था। घर के भीतर ही योगा और प्राणायाम करते रहे। उनकी पत्नी क्षमा रोज उन्हें फोन पर सकारात्मक जानकारियां देती थीं और बताती थीं कि कोविड से बुजुर्ग भी ठीक हो जा रहे हैं।
खोराबार की स्वास्थ्य शिक्षा एवं सूचना अधिकारी श्वेता पांडेय ने उनकी काफी मदद की। इस बीच, आशुतोष सोशल मीडिया के नकारात्मक संदेशों से दूर रहे।
भेदभाव का मलाल है
आशुतोष का कहना है कि कोविड के भय के कारण समाज में लोग कोविड मरीजों और उनके परिजनों के प्रति भेदभाव का रवैया अपनाते हैं। उन्हें कुछ पड़ोसियों द्वारा इस प्रकार के बर्ताव का मलाल भी है।
वह बताते हैं कि जब दूसरी बार कोविड की जांच करवाने जा रहे थे तो तमाम लोगों ने आपत्ति जताई और उनके बहन से भी शिकायत की। इस बात से थोड़ा कष्ट हुआ लेकिन परिवार और मित्रों से मिले संबंल ने मनोबल बनाये रखा।
लोगों को समझना होगा कि अगर किसी कोविड मरीज से सुरक्षित दूरी पर प्रोटोकॉल के साथ मिलेंगे और मदद करेंगे तो बीमारी नहीं होगी। भय और भेदभाव की प्रवृत्ति से ऊपर उठना होगा।