JNU, एक बेहतर शिक्षण संस्थान या राजनीती का अड्डा?

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संदीप त्रिपाठी

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गोरखपुर: पिछले कुछ दिनों से देश के सबसे बेहतर शोध संस्थान में जो कुछ चल रहा है वो बेहद ही शर्मनाक है।50 की उम्र में भी JNU जैसी संस्था में पढ़ाई कर रहे वह लोग आखिर अपनी जवाबदेही कब तय करेंगे कि वह इस उम्र में पहुंचने के बाद भी मुफ्त खोरी की आदत से खुद को कब बाहर लाएंगे।

बहुत ही शर्मनाक है कि JNU जैसी संस्था में पढ़ने वाले सड़क पर लाठियां खा रहे हैं जिन्हें देश के बड़े संस्थानों में शिक्षा के स्तर में अपना बड़ा योगदान देना चाहिए देश के शिक्षा का स्तर इनके द्वारा संस्थानों में जाने से ऊंचा होगा ना की सड़क पर लाठियां खाने से।

किन्तु JNU इतना महत्वपूर्ण नहीं है कि इसके लिए लोग आपस में लड़ने लगें। JNU पर हल्ला करने से अन्य स्थानों पर शिक्षा-व्यवस्था सुधर जाएगी, सस्ती हो जाएगी ऐसा भी नहीं है। सरकार की सब्सिडी से JNU लगभग मुफ्त भले है लेकिन हम अभी इतने विकसित और सशक्त अर्थव्यवस्था नहीं हुए है कि देश भर में पढ़ाई का स्तर JNU सरीखा और मुफ्त कर सकें।

यदि हमारे अंदर देश की शिक्षा-व्यवस्था को लेकर इतनी ही अधिक चिंता है तो हमें सोचना चाहिए कि आखिर इस शिक्षा संस्थान में ऐसा क्या है कि ये अब हमेशा विवादों मे ही रहता है। हमें सोचना चाहिए कि जहाँ हम बच्चों को ज्ञान अर्जन के लिए भेजते हैं, शोध के लिए भेजते हैं, वहॉं वो ‘ले के रहेंगे’, ‘SAVE KASHMIR’, वामपंथ, दक्षिणपंथ, ‘GO BACK BHAGWA’, ‘मोदी हाय-हाय’ करना क्यों सीखने लगते हैं? जहाँ हमें गरीबी के नाते जल्द से जल्द डिग्री लेकर कुछ करना चाहिए, वहॉं क्यों बच्चे एक के बाद दूसरी, और दूसरी के बाद तीसरी डिग्री हासिल करना चाहते हैं?

जिस बच्चे को सूतापट्टी या मोतीझील से ख़रीदे कपड़े का शर्ट-पेंट सिलवा वहॉं भेजा जाता है वो आखिर कैसे वहॉं जींस और फैब इंडिया का कुरता पहनना सीख जाता है?