गाँव से खाली हाथ निकले युवा ने कैसे खड़ी कर ली खुद की कंपनी

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आयुष दुबे
16 साल का एक किशोर आज से 10 साल पहले पढ़ाई करने गोरखपुर शहर आता है। साथ ही कुछ सपने भी लेकर आता है। पिता किसान हैं तो पढ़ाई के लिए पर्याप्त पैसे नहीं दे पाते। किशोर पढ़ाई के साथ-साथ पार्ट टाइम जेब करने लगता है। हालांकि उसकी सोच इससे अलग थी। नौकरी करने की जगह नौकरी देने की। 2009 में सिमकार्ड बेचने से शुरू हुआ यह सफर आज एक अच्छे मुकाम पर है। युवक ने अब 40 लोगों को विधिवत रोजगार दे रखा है। यह सफर बढ़ता ही जाएगा और कारवान का शक्ल अख्तियार करेगा ऐसी शुभकामना है।

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हम बात कर रहे हैं अपने शहर गोरखपुर के रियल इस्टेट कारोबारी मुकेश शाही की। मुकेश बताते हैं कि रियल स्टेट का काम करने से पहले उन्होंने 4 साल तक वोडाफोन में काम किया। घर की हालात ठीक नहीं थी लिहाजा पढ़ाई के साथ जॉब करना जरूरी था। मुकेश के पिता किसान हैं। मुकेश शाही गगहा ब्लॉक के सीहाईचपार गांव के रहने वाले हैं और गोरखपुर में अपने मामा के घर रहकर पढ़ते थे।

मुकेश शाही बताते हैं कि शुरू से ही मैंने ठान लिया था कि नौकरी मुझे नहीं करनी है। अपना ही कोई काम करना है और लोगों को रोजगार देना है ।हालांकि शुरुआत में मुझे नौकरी करनी पड़ी और 4 साल तक वोडाफोन में मैं सिमकार्ड बेचता रहा। उसके बाद लखनऊ की एक रियल इस्टेट कंपनी में नौकरी की। यहीं काम करते हुए इस क्षेत्र में ही हाथ आजमाना की कोशिश करने लगा। आज मुकेश शाही की खुद की रियल इस्टेट कंपनी ‘निर्मला ग्रीन सिटी’ है। निर्मला ग्रीन सिटी में 40 एम्प्लॉई कार्यरत हैं। कुछ कर गुजारने की चाहत और जज्बा हो तो कुछ भी संभव है। इसे सार्थक करने वाले मुकेश शाही गोरखपुर के संघर्षरत युवाओं के लिए नज़ीर हैं।