भारत के सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकों के बारे में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आपसी सहमति से समान सेक्स वाले लोगों के बीच यौन संबंध को आपराधिक नहीं माना जाएगा. 1862 में बनी आईपीसी की धारा 377 के तहत अब तक इसको आपराधिक माना जाता था और उसके लिए 10 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान था. हालांकि इस कानून के तहत बहुत कम ही लोगों को सजा सुनाई गई लेकिन आलोचकों का कहना है कि इसके जरिए समलैंगिकों, बाइसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोगों को प्रताड़ित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा है कि दो वयस्क लोगों के बीच आपसी सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता.चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्यीय बेंच ने अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए समलैंगिक संबंध को अपराध की श्रेणी में रखने से इंकार कर दिया है. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि समलैंगिकों को समान अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने कहा कि समलैंगिकों को सम्मान के साथ जीने का अधिकार है. चीफ जस्टिस ने कहा कि पुराना आदेश सही नहीं था. समय के साथ कानून को बदलना चाहिए. अल्संख्यकों के अधिकार की रक्षा होनी चाहिए.केंद्र सरकार ने इस मामले में अपना पक्ष रखते हुए कहा था कि दो वयस्क लोगों में आपसी सहमति से बनाए गए संबंध को अपराध की श्रेणी में बनाए रखने या नहीं रखने का फैसला वह कोर्ट के विवेक पर छोड़ती है. हालांकि केंद्र ने कहा था कि इस धारा के अंतर्गत नाबालिगों और जानवरों के साथ अप्राकृतिक यौन संबंधों को अपराध की श्रेणी में रखा गया है और उसे वैसे ही बनाए रखना चाहिए.