संदीप त्रिपाठी
गोरखपुर।लोकसभा चुनाव के नतीजे आ चुके है, जनता ने एक बार फिर मोदी सरकार को मौका दिया है। बात कर रहे हैं यूपी की जहां बीजेपी की जीत ने एसपी और बीएसपी के गठबंधन के जातीय समीकरण को जोरदार चुनौती दी है।
जहां महागठबंधन के लिए नतीजा चिंताजनक है तो वही भारतीय जनता पार्टी के नेता इस जीत को 2014 से भी बड़ी मान रहे हैं जब एनडीए ने राज्य की 73 सीटों पर कब्जा किया था। बीजेपी ने राज्य में करीब 50 % वोट पे अपना कब्जा जमाया है जो गठबंधन के वोट शेयर से ज्यादा था। यूपी में बीएसपी को 2019 के लोकसभा चुनाव में 19.26% वोट मिले जबकि एसपी का वोट शेयर 17.96% रहा। आरएलडी को 1.67% वोट मिले।
बीजेपी के लिए सबसे बड़ी बात अमेठी, कन्नौज और बदायूं का जीत है। तो महागठबंधन के लिए भविष्य के खतरे के संकेत केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का अमेठी किला ध्वस्त करते हुए अपनी जीत का परचम लहरा दिया। बीजेपी ने एसपी प्रमुख अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव और उनके चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव को क्रमशः कन्नौज और बदायूं से हरा दिया है।ऐसे में सवाल उठ रहा है कि यूपी में गठबंधन का गणित काम क्यों नहीं किया।
गठबंधन को उनकी उम्मीद के मुताबिक सफलता नहीं मिली समाजवादी पार्टी के सीटों की संख्या जहां घटकर 5 पर सिमट गई, वहीं मायावती की बहुजन समाज पार्टी 2 अंको में पहुच गयी राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार मामला गोरखपुर और फूलपुर उपचुनावों के बिल्कुल उलट गया है, जहां एसपी ने बीएसपी की मदद से प्रभावशाली जीत हासिल की थी। इस बार यादव बिरादरी ने वोट बीएसपी को ट्रांसफर किया, लेकिन दलित समुदाय ने एसपी को वोट देने के बजाय मोदी पर भरोषा जताया इसके अलावा कांग्रेस ने सिर्फ रायबरेली सीट जीती, लेकिन उसने बाराबंकी, बदायूं, संत कबीर नगर और बस्ती जैसी करीब आधा दर्जन लोकसभा क्षेत्रों में गठबंधन गांठ ढीली करने में कोई कसर नही छोड़ी।