विलुप्ति की ओर देश के विपक्षी पार्टीयां

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आयुष द्विवेदी
गोरखपुर।

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देश के लोकतंत्र के लिए पक्ष और विपक्ष दोनों का होना जरुरी होता हैं। लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थति है कि देश में बीजेपी के मुकाबले एक स्वस्थ प्रामाणिक व मजबूत प्रतिपक्ष नहीं है।अपवादों को छोड़ दे तो अधिकतर क्षेत्रीय दल घोर जातिवाद वंशवाद और पैसावाद के आरोप से सने है और अब तो राष्ट्रीय दल भी इसमें नहा रहे है।इसका उदाहरण गोरखपुर और फूलपुर में देखने को मिल रहा है।आपको बताते चले कि केंद्र में और यूपी दोनों में बीजेपी की सरकार है।खैर राजनीती बदल रही है और उसके तौर तरीके भी,हम बात कर रहे है देश की राजनीती में विपक्ष कैसे समाप्त हो रही है। यह बहुत ही गंभीर प्रश्न है की विपक्ष के पास तमाम मुद्दे के बावजूद वह आज हाशिये पर क्यों है ?
अगर यह कहां जाए की सीधे सीधे इसके लिए प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस जिम्मेदार है तो यह बेमानी नहीं होगी। क्योंकि उसके पास देशहित वाले नज़रिए का आभाव है,कांग्रेस इस गत के लिए खुद जिम्मेदार है क्योंकि उनके नेता बेलगाम हो गए है और जमीनी प्रश्न के जगह देशहित से जुड़े ज्वलंत मुद्दे पर विवादित बयान दे देते है और मुख्य मुद्दा पीछे छोड़ देते है।इनके बयान को बीजेपी लपक लेती है और फिर इन्ही की बोल से इनपर वार करती है।’कभी मौत का सौदागर’ तो ‘कभी चाय वाला’ तो कभी ‘नीच’।फिर ये मुद्दा चुनाव के समय और तंज को कैसे देश से जोड़ना यह कोई बीजेपी से सीखे। इसी जगह पर बीजेपी पास और कांग्रेस फेल हो जाती है।खैर समय करवटे ले रही है और माहौल बदल रहा है बस कांग्रेस को बदलना होगा क्योंकि लोगो की माने तो लोग बदलाव के लिए तैयार है।लेकिन इसके लिए मुख्य विपक्षी दलों को भी बदलना होगा।प्रधानमंत्री मोदी कहते है कि कांग्रेस मुक्त भारत उनका सपना है,लकिन इतिहास गवाह है कि संसार में एक पुस्तक एक पंथ एक ईश्वर मानने वाले नहीं है और ना आगे होने वाले है।