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ये भारत की राजनीति है ज़नाब दोस्त कौन दुश्मन कौन? ये अवसर बताता है…

आयुष/नीतीश

गोरखपुर।

हमारे देश की राजनीति ने अपनी दिशा और दशा दोनों को बदल दिया हैं हम ऐसा इसलिए बोल रहे हैं क्योंकि आज देश की राजनीति में एक नया ट्रेंड चला है कि बीजेपी को देश के सत्ता से कैसे बेदखल किया जाए चाहे उसके लिए कुछ भी करना पड़े और जो बीजेपी को रोकने की कोशिश कर रहा है या यू कहे अगवानी कर रहा है उसके साथ सहयोगी दल ब्लैकमेलिग का खेल खेल रहे है।बात अगर कर्नाटक की करे तो वहां तीसरे नम्बर की पार्टी जेडीएस को कांग्रेस पार्टी ने सत्ता सिर्फ इसलिए सौप दी ताकि बीजेपी के विजय रथ को रोका जा सके और आज स्थिति यह है कि कांग्रेस के नेता और जेडीएस के लोग रोज सरकार के लिए खतरा बने हुए है और इसका परिणाम कुछ दिनों में सामने भी आ जाएगा अब तो यही कहा जा सकता हैं कि कर्नाटक में भगवान भरोशे सरकार चल रहा है।अब बात उत्तर प्रदेश की करते हैं जोकि देश का सबसे बड़ा राज्य है और यह कहा तो ये भी जाता है कि अगर आपको प्रधानमंत्री बनना है तो यूपी से होकर ही गुजरना होगा।2014 का लोकसभा और 2017 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए अच्छा साबित हुआ पर 2018 के यूपी उपचुनाव के बाद विपक्ष के हौसले एकदम बुलंद है और हो भी क्यों ना जब सीएम योगी और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मोर्य को अपनी सीट गवानी पड़ गयी और अब कैराना नुरपुर में भी विपक्ष की एकता ने बीजेपी को नतमस्तक करके अर्श से फर्श पर लाकर 2019 का ट्रेलर दिखा दिया।अब दिक्कत यह है कि फिल्म तो तैयार है पर मुख्य भूमिका में कौन है पता नहीं।लेकिन यह सच है कि अखिलेश यादव उपचुनाव में खुलकर प्रचार किए और बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए वह बसपा से भी हाथ मिलाने में गुरेज नहीं किए और इसका उनको फायदा भी मिला लेकिन आज वही बसपा संतोषजनक सीट ना मिलने पर अपने दम पर चुनाव लड़ने को तैयार है। अखिलेश को पता है बिन बसपा के सहयोग से हर सीट पर मुकाबला कठिन हो जाएगा इसलिए वह खुद बसपा के हर शर्त को मानने के लिए तैयार है शायद इसीलिए अखिलेश 40 सीट बसपा को देने को तैयार है। अगर महागठबंधन में कांग्रेस आ जाती है और कुछ छोटे दल भी शामिल होते हैं तो फिर समाजवादी पार्टी कितने सीटो पर चुनाव लड़ेगी कुछ कहा नहीं जा सकता ।लेकिन इतना तो जरूर है कि जो भी पार्टी बीजेपी के खिलाफ हुंकार भर रही है सहयोगी तुरंत शर्त रख दे रहे है और बीजेपी को सिर्फ हराने के लिए उस पार्टी की बात भी माननी पड़ रही है।अब ये तो 2019 में ही पता चलेगा कि कौन किसपर भारी पड़ता हैं क्योंकि ज़नाब ये भारत की राजनीति हैं कब कौन दोस्त बन जाये कब कौन शत्रु ये अवसर बताता हैं।

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