2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अटल जी की सरकार थी। लोगों को पूरी उम्मीद थी कि अटल जी दुबारा सत्ता में आएंगे। उस दौर में विपक्ष तो नहीं कहेंगे लेकिन कांग्रेस पार्टी हाशिए पर थी।लेकिन रिजल्ट और आया यूपीए ने सरकार बनाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया।
आज स्थिति यही है पूरा विपक्ष हाशिए पर है। बस देश मे 2 नाम की चर्चा हो रही है सम्पूर्ण विपक्ष और बीजेपी मोदी जी के नाम पर चुनाव लड़ रही है। स्थिति यह है कि बीजेपी फिर से मोदी जी के नाम पर वोट करने को कह रही है तो वहीं विपक्ष मोदी को अपने जातिगत समीकरण बैठाकर हर राज्य में घेरा हुआ है।लेकिन सोशल मीडिया पर मोदी फैन विपक्ष से कहीं मजबूत नजर आ रहे हैं।
अगर जमीनी हकीकत देखेंगे तो जातिवाद अपने सांसद से नाराज है और उनकी ये नाराजगी बीजेपी के लिए मुसीबत बनी हुई है।एक उदाहरण संतकबीरनगर का ही ले गठबंधन प्रत्याशी कुशल तिवारी के समर्थन में बड़े तादाद में वहीं लोग हैं जो देश का प्रधानमंत्री मोदी को ही देखना चाहते है।
मतलब यह कि प्रधानमंत्री मोदी को देखना चाहते है लेकिन सांसद कुशल तिवारी को बनाना चाहते है। अब सवाल यह है कि सांसद किसी और दल के प्रत्याशी को बनाएंगे और प्रधानमंत्री में पसंद मोदी यह कैसे संभव ? यह सिर्फ संतकबीरनगर का उदहारण नहीं है कुशीनगर के कुछ मोदी समर्थक वोट तो कांग्रेस प्रत्याशी आरपीएन सिंह को देना चाहते है लेकिन प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी पसंद है।
यह सिर्फ 2 जिलों की बात नहीं यूपी और बिहार के कई लोकसभा का है जहां लोग अपने सांसद से नाराज हैं या जातिवादी राजनीति के कारण अपने जाति के प्रत्याशी को वोट देना चाहते है लेकिन प्रधानमंत्री मोदी को बनाना चाहते है। कहीं ऐसा तो नहीं कि 2004 वाली कहानी फिर से एक बार जनता दोहरा दे और आश्चर्यजनक परिणाम देखने को मिल जाए।
बीजेपी मोदी के नाम पर निश्चिन्त है उसको उम्मीद है लोग सांसद प्रत्याशी को नहीं मोदी के नाम पर वोट करेंगे,लेकिन अगर जमीन पर देखा जाए तो ठीक इसके उल्टा परिणाम देखने को मिल रहा है। खैर आगे क्या होगा ये तो आने वाला समय यानी 23 मई ही बताएगा जिस दिन नतीजे घोषित होंगे।