देश के 17 वें लोकसभा का चुनाव सम्पन्न हो चुका है। 542 सांसद अपने अपने संसदीय क्षेत्रों से चुन कर संसद पहुंच चुके हैं। इस बार लोकसभा चुनावों में फिल्मी कलाकारों का बोलबाला रहा।
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चाहे वह क्षेत्रीय भाषाओं के फिल्मी कलाकार हों या राष्ट्रीय भाषाओं के, अत्यधिक संख्या में उन्होने चुनाव लड़ा। कुछ राजनीति की इस कड़ी परीक्षा में जीत गये लेकिन कुछ का साथ किस्मत नें नहीं दिया और वे संसद नहीं जा सके।
दशकों पहले से ही फिल्मी स्टारों का चुनावों में किस्मत आजमाना आम बात रही हैं चाहे वह सुपरस्टार राजेश खन्ना हों या एंग्री यंग मैन अमिताभ बच्चन यहां तक की शत्रुघ्न सिन्हा और गोविंदा और जैसे भी मशहूर फिल्मी कलाकार राजनीति में आये।
इनमें से कुछ को यह बिरादरी रास आयी जो आज भी इसमें नाबाद खेल रहे हैं और कुछ इस खेल से आउट हो गये।
स्टार कलाकारों का राजनीति में आना न सिर्फ बॉलीवुड से है बल्कि तेलुगू, तमिल, मराठी, बंगाली, भोजपुरी जैसी क्षेत्रीय भाषा के कलाकारों ने भी राजनीति में अपना लोहा मनवाया है।
दक्षिण भारत की मशहूर अभिनेत्री जयललिता और जाने माने अभिनेता एन टी रमाराव इसके उदारण है जों एक बार राजनीति में आयें फिर मरते दम तक जनता के होकर रह गये।
लेकिन कुछ अमिताभ बच्चन, गोविंदा और ही मैन कहे जाने वाले धर्मेंद्र जैसे कलाकार भी राजनीति में आये जिन्हे यह राजनीति रास न आयी और पुनः इन्होने रूपहले पर्दे का रूख कर लिया।
2019 में कलाकारों और खिलाड़ियों को अत्यधिक मात्रा में चुनाव लड़वाने का काम बीजेपी ने किया जिसमें से अधिकतर जीत कर आये।
अब ज्यादातर की जीत को उनके फेम का असर न कहकर देश में चल रही तथाकथित मोदी सुनामी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी।
इस बार टीएमसी की तर्ज पर बीजेपी ने भी क्षेत्रीय कलाकारों पर भारी मात्रा में दाव चला जिसमें वह एक हद तक सफल भी हुई। यहां तक की पूरी भोजपुरी इंडस्ट्री ही मानों मोदी जी की भक्त हो गई हो। मनोज तिवारी जी गत वर्षों से लगातार दिल्ली की राजनीति में बने हुये हैं जो इस बार भी जीत गये, वहीं गोरखपुर से रवि किशन तो जीतें मगर आजमगढ़ से दिनेश लाल यादव निरहुआ का स्टार पावर अखिलेश यादव जैसे नेता के आगे न चल सकता और वह हार गये।
भोजपुरी स्टार पवन सिंह से लेकर खेसारी लाल तक बीजेपी के प्रचार में जुटे रहे। लगता है बीजेपी ने ममता दीदी से ये दांव सीख लिया जैसे उन्होने बंगाल कई बंगाली कलाकारों को लड़ाया जिसमें से नुसरत जहान,देव अधिकारी और मिमि चक्रवर्ती जीत कर आये लेकिन मुनमुन सेन को भाजपा के कलाकार कैंडीडेट बाबुल सुप्रियो से हार का सामना करना पड़ा।
पूर्वांचल और उत्तर भारत में बीजेपी का भोजपुरी कार्ड सक्सेस रहा। क्रिकेट जगत से भी गौतम गंभीर चुनाव लड़े और जीते हालांकि बीजेपी साथ ही गायक हंसराज हंस भी दिल्ली से जीत कर आये। हेमामालिनी मथुरा से फिर जीती पर कांग्रेस से उर्मिला मातोंडकर महाराष्ट्र में तथा जयाप्रदा राम पुर से हार गईं। अमेठी से एक स्टार टीवी कलाकार स्मृति ईरानी की राहुल गांधी पर जीत को यह इतिहास याद रखेगा।
अब अगर इनकी समीक्षा करें तो यब स्पष्ट होता है कि इस बार फिल्मी जगत की हस्तियों की भूमिका इस चुनाव में चरम पर दिखती है। अब इनके दो पहलू हो सकते हैं या तो ये कलाकार राजनीति में आये हैं तो अपनी बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन इस क्षेत्र में करें या फिर केवल शोपीस बनने राजनीति में न आयें क्योंकि सांसद या विधायक रहते हुये अपने फिल्मों पर फोकस जनता के वोटों का अपमान होगा।
जिस प्रकार जयललिता, एनटीआर, स्मृति ईरानी, मनोज तिवारी, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, सुनील दत्त जैसे दिग्गजों ने फिल्म इंडस्ट्री से राजनीति में आने के बाद इंडस्ट्री से तौबा कर ली और जनता के हो गये उसी प्रकार इन्हे काम करना होगा वर्ना दो नाव पर चढ़ने से इनका नुकसान तो है ही साथ ही जनता भी इन्हें माफ नहीं करेगी।
(यह लेख गोरखपुर लाइव के लिए करन त्रिपाठी ‛अविचल’ ने लिखा है। करन कविता के साथ-साथ सामाजिक मुद्दों पर भी लिखते रहते हैं)