सुनील गहलोत, गोरखपुर। धुरियापार (अब वर्तमान में चिल्लूपार) के पूर्व विधायक व पूर्वमंत्री राजेश त्रिपाठी गिरने से गंभीर रूप से घायल हो गए। पूर्वमंत्री राजेश त्रिपाठी घर मे पैर फिसल कर गिरने से घायल हो गए जिससे उन्हें कमर में गम्भीर चोट आ गयी है।
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रविवार को घटना की सूचना के बाद पहुंचे शुभचिंतको द्वारा उन्हें बड़हलगंज स्थित गुलफंशा हॉस्पिटल पर ले जाया गया। जहां प्राथमिक उपचार के डॉक्टर ने उन्हें गोरखपुर अथवा किसी उच्चीकृत हॉस्पिटल में दिखाने और एमआरआई कराने की सलाह दी, जिसके बाद उन्हें आजमगढ़ के वेदांता हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया। उनके साथ हुई घटना को लेकर प्रशंसक/शुभचिंतक ईश्वर से उनकी सलामती की दुआ मांग रहे।
जिले के दक्षिणांचल की बहुचर्चित सीट है चिल्लूपार। कभी यह सीट धुरियापार विधानसभा क्षेत्र के नाम से जानी जाती थी। यह क्षेत्र कभी यूपी की राजनीति में अहम भूमिका निभाता था। तब यहां से चुनाव जीतने वाले बाहुबली नेता हरिशंकर तिवारी सत्ता के बेहद करीबी माने जाते थे। लोग तो कहते थे कि यूपी की सत्ता के समीकरण इसी चौखट पर बनते थे।
एक समय था जब चिल्लूपार क्षेत्र को माफियाओं का गढ़ माना जाता था। शेरे ए पूर्वांचल के नाम से प्रसिद्ध वीरेंद्र प्रताप शाही और मोस्ट वांटेड श्री प्रकाश शुक्ल जैसे नाम इसी क्षेत्र से आते थे। लेकिन पंडित हरिशंकर तिवारी बाहुबलियों के गुरु कहे जाते थे। बल्कि उन्हें अपराध के राजनीतिकरण का श्रेय भी दिया जाता है।
पूर्वांचल में 80 के दशक में चिल्लूपार विधानसभा क्षेत्र से हरिशंकर तिवारी और लक्ष्मीपुर से दिवंगत वीरेन्द्र शाही ने अपने बाहुबल के भरोसे निर्दल प्रत्याशी के रूप में राजनीति में कदम रखा। अप्रत्यक्ष तौर पर हरिशंकर तिवारी को कांग्रेस और वीरेन्द्र शाही को जनता पार्टी ने शरण दी। माना जाता है कि पूर्वाचल में बाहुबलियों के राजनीति में कदम रखने की शुरुआत यहीं से हुई। फिर तो क्षेत्रीय दलों में मुलायम सिंह यादव हों या मायावती, कोई भी राजनीतिक रूप से बाहुबलियों को गले लगाने से पीछे नहीं रहा।
हरिशंकर तिवारी चिल्लूपार विधासभा क्षेत्र से लागातार 6 बार विधायक रहे। सत्तर के दशक में हरिशंकर तिवारी पहले ऐसे नेता थे जिसने जेल के सीखचों के पीछे कैद होने के बावजूद चुनाव जीता। लेकिन उनकी सफलता का राज यह था कि बाहुबली होते हुए भी वह अपने क्षेत्र के लिए एक सामान्य व्यक्ति बने रहे। क्षेत्रवासियों के लिए उनके दरवाजे हमेशा खुले रहते थे और वह खुद क्षेत्र में समय बिताते थे। उन्होंने इस सीट पर लगातार 27 वर्षों तक निर्बाध राज किया और अपने समय के मुख्यमंत्रियों कल्याण सिंह और मुलायम सिंह की सरकारों में कैबिनेट मिनिस्टर रहे। लेकिन व्यस्तता और समय के साथ क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर हो गई।
फिर एक समय वह भी आया जब श्मशान बाबा पं राजेश त्रिपाठी ने उन्हें चिल्लूपार में ही हरा दिया। 2007 के चुनाव में हरि शंकर तिवारी ने पहली बार बसपा के राजेश त्रिपाठी से हार का स्वाद चखा। यह चुनाव वह समाजवादी पार्टी के समर्थन से लड़े थे। -2012 के विधानसभा चुनाव में वह एक हार फिर राजेश त्रिपाठी से हार गए।
इसके बाद से तो हरि शंकर तिवारी ने जीत का स्वाद ही नहीं चखा। राजनीती की महीन परख और पाला बदलने में माहिर हरिशंकर तिवारी पहले कांग्रेस, फिर बीजेपी और उसके बाद एसपी में पाला बदलते रहे फिलहाल, हरि शंकर तिवारी का पूरा कुनबा बीएसपी में है। उनकी खोई राजनीतिक विरासत को उनके छोटे पुत्र विनय शंकर तिवारी फिर से सहेजने का प्रयास कर रहे हैं।
आखिर 2017 के विधानसभा के चुनाव में हरिशंकर तिवारी ने अपने राजनैतिक रसूख के बल पर राजेश त्रिपाठी का टिकट कटवा दिया। इस बार वह अपने पुत्र विनय शंकर तिवारी को बसपा से टिकट दिलवाने में सफल रहे और विनय तिवारी चुनाव भी जीत गए। उधर राजेश त्रिपाठी पार्टी से निकलने के बाद बीजेपी में शामिल हो गए।