आयुष द्विवेदी
गोरखपुर।
गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्र संघ चुनाव की तिथि घोषित हो चुकी हैं।आगामी 13 सितंबर को विश्वविद्यालय में वोटिंग होनी हैं जिसके लिए प्रत्याशी अपने अपने चुनाव प्रचार प्रसार में जमकर मेहनत कर रहे हैं।सभी प्रत्याशी छात्रों के बीच जाकर अलग अलग मुद्दों पर चर्चा कर रहे हैं।इस समय गोरखपुर विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव से कैंपस की राजनितिक चहलकदमी बढ़ गयी है।छात्र नेता पहले तो एकजुट होकर छात्रसंघ चुनाव कराने को लेकर सरकार के खिलाफ हल्ला बोला था पर अब वही छात्रनेता तिथि घोषित होने के बाद एक दूसरे पर चुनाव जीतने के लिए व्यक्तिगत आरोप लगाने से भी पीछे नहीं हट रहे।खैर चुनाव में ऐसी चीजें मामूली हैं और शायद इसीलिए भारत लोकतांत्रिक देश हैं।अगर विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव नहीं होगा तो इन छात्र नेताओ का क्या होगा जो अपना भविष्य राजनीति में बनाना चाहते हैं।
लेकिन सवाल यह है कि चुनाव के दौरान आरोप-प्रत्यारोप तो ठीक है और निजी हमले को भी अगर हम एक बार के लिए जायज ठहरा दे, लेकिन जो आरोप छात्र नेता एक दूसरे पर लगा रहे है क्या वह छात्रों के हित से जुड़ा हुआ है?
अगर आपको हकीकत जानना है और इसकी बानगी देखनी है तो एक बार गोरखपुर यूनिवर्सिटी चले आईए आपको sc/st बिल और संसद में जाति के लिए लड़ने वालो से भयंकर जातिवाद विश्वविद्यालय कैंपस में दिख जाएगा।राजनितिक दलों के लिए तो जाति महत्वपूर्ण विषय है और उसको साधने के लिए वह जातिवाद करते है,लेकिन राजनीति के प्रथम पाठशाला में जहा मुद्दा छात्रों के पठन-पाठन,हॉस्टल की समस्या और यूनिवर्सिटी से जुड़ी हुई मुद्दों पर होनी चाहिए तो यह बिलकुल नहीं है।
यहां मुख्य मुद्दा है कि प्रत्याशी का जाति क्या है और उस जाति में वह फिट बैठ रहा है या नहीं?
यही नहीं प्रत्याशी भी क्लास रूम में भी अपने लच्छेदार जातिवाद पर भाषण देकर वाहवाही लूट रहे है।फिर यह सवाल है कि राजनीति के प्रथम पाठशाला में जिस उद्देश्य के लिए छात्र संघ का चुनाव होता है तो वह किस लिए और किसके लिए होता हैं?
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