गोरखपुर उपचुनाव के परिणाम ने फिर बदला इतिहास

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आयुष/नीतीश
गोरखपुर।

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इतिहास तो बनता ही है,टूटने के लिए।हम ऐसा इसलिए बोल रहे क्योंकि यह बानगी देखने को मिला गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में।3 दशक से यह सीट गोरखपुर मंदिर के इर्द गिर्द से होकर गुजरता था या ये भी कह सकते है कि बीजेपी के कब्जे में था।लेकिन योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने के बाद गोरखपुर में उपचुनाव हुआ और सपा के प्रवीण निषाद ने उपचुनाव में जीत दर्ज किया।लेकिन ये समझना होगा कि जिस प्रवीण निषाद को गोरखपुर लोकसभा की जनता और खुद समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव तक नहीं जानते थे,वो प्रवीण आज इतिहास बदल कर गोरखपुर का सांसद होगा।यहां समझना होगा की इसका अध्याय आज से नहीं लिखा गया था, इसकी इबारत तो उसी दिन लिख दिया गया जब गोरखपुर यूनिवर्सिटी से अध्यक्ष पद का चुनाव अमन यादव ने जीता और इतिहास बदला।आपको बता दे कि गोरखपुर यूनिवर्सिटी में भी एक वर्ग का हमेशा सा बोलबाला रहता था।लेकिन उस तिस्लिम को तोड़ने के बाद अनसूचित और ओबीसी को जोड़ने और एक होने की शुरुवात हुई।एक तरीके से कह सकते है बसपा और सपा के नौजवान कार्यकर्ताओ का एक होना।उसके बाद धीरे धीरे चुनाव दर चुनाव उनके एक होने से उपचुनाव में भी एकजुटता देखने को मिली।क्योंकि हम बात कर रहे हैं कि गोरखपुर उपचुनाव की। गोरखपुर की यह सीट निषाद बाहुल्य था और निषाद पार्टी के संजय निषाद को यह वर्ग अपना नेता मानता हैं।लेकिन सपा के साथ गठबंधन को तो निषाद पार्टी तैयार थी पर सपा चाहती थी कि संजय सपा के बैनर से चुनाव लड़े।लेकिन संजय को यह मंजूर नहीं था,इसीलिए सहमति तब बनी,जब उनके इंजीनियर बेटे प्रवीण को सपा ने टिकट देने पर सहमति बनाई।इसके बाद ही पीस पार्टी और कुछ जातिगत दलों का साथ यही से इतिहास बदलने लगा और गोरखपुर को मिल गया एक नया सांसद ई.प्रवीण निषाद।