खत्म हो गयी शिवसेना की हिंदुत्व की बहार

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आयुष द्विवेदी

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सियासत कब करवट ले ले कुछ कहा नहीं जा सकता। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लग चुका है, यह बात हमे समझना होगा की ऐसा क्यों हुआ?

इसके लिए थोड़ा हमे फ्लैशबैक में जाते हैं जब 2014 के विधानसभा चुनाव मे पहले नम्बर पर भारतीय जनता पार्टी, दूसरे नम्बर पर शिवसेना, तीसरे नम्बर एनसीपी, यानी शरद पवार की पार्टी और चौथे नम्बर पर कांग्रेस थी स्थिति आज भी वही है लेकिन बस अंतर यह है कि शिवसेना गठबंधन में चुनाव लड़ी और पार्टी के लिहाज से देखे तो वह आज भी दूसरे नम्बर पर है।

सवाल यह है कि शिवसेना जब 2014 में गठबंधन में नहीं थी तब वह दूसरे नम्बर की पार्टी थी और आज वह गठबंधन के बाद भी दूसरे नम्बर की पार्टी है फिर वह कौन सी वजह है कि वह आज मुख्यमंत्री पद के लिए मुंगेरी लाल के हसीन सपने देखने लगी।

बाला साहब के समय से ही शिवसेना उग्र हिंदुत्व की छवि पर आज तक कायम थी लेकिन चुनाव बीतने के बाद सत्ता सुख के लिए वह सेकुलर हो गयी। सवाल तो यह भी है कि बीजेपी की तरह शिवसेना हिंदुत्व कार्ड खेलती रही लेकिन वह मोहरा कैसे बन गयी यह सभी सवाल लोग करने लगे हैं।

आज शिवसेना ना घर की है ना घाट की लेकिन इसमें असली विलेन कौन है यह कहा नही जा सकता।
वर्ष 2014 में बीजेपी के खिलाफ एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल सवाल उठाए तो शिवसेना को लगा कि अब बहुत कुछ हाथ में नहीं है तो वह बीजेपी के साथ हो गयी। लेकिन आज शिवसेना बीजेपी के साथ गठबंधन में थी तो विलेन की भूमिका में कौन है जो उसे इस बार सत्ता सुख से भी रोका और उसके साथ ही केंद्र के NDA से भी दूर किया।