गोरखपुर।
आज कल के भागते दौड़ते दुनिया मे जब कोई या कुछ लोग किसी के सेवा के लिए कुछ करते है तो हम सब का दिल ये देख कर खुश हो जाता हैं,मगर जरा सोचिए कि पहले जो आपको या हमको दिखा वो क्या वाकई सच था और क्या वो सेवा हमेशा जरूरतमंदों को दिया जाता होगा? तो हम आप कहेंगे हमे इससे क्या इतना टाइम किसके पास हैं.. तो साहब जरा रुकिए हमारे शहर, प्रदेश और देश मे तमाम ऐसे सेवा संस्थाए चल रहे है जो मात्र दिखावा कर रहे है या कहे तो लोगो से या सरकार से लोगो की सेवा के नाम पर धन उगाही कर रहे हैं।
आइये अब आपको बताते हैं अपने शहर गोरखपुर में चल रहे एक सेवा संस्थान के बारे में जिसका नाम स्माइल रोटी बैंक जी हां स्माइल रोटी बैंक जिसके संचालक है आजाद पांडेय। इस सेवा संस्थान के बारे में जानकारी लेने हमारी टीम पहुँची रेलवे स्टेशन स्थित इनके अंत्योदय नामक सेंटर पर जहां हमें 6-7 वॉलेंटियर मिले और लगभग 15-16 बच्चें जब हमने बच्चो से बात की तो बच्चो ने हमे बताया कि वो सभी वहाँ हर दिन नहीं आते कोई कभी तो कोई कभी आता हैं। जब हमने इसका कारण पूछा तो उन सब ने यही बताया कि हम लोग कामधाम करते है कूड़ा उठाते हैं जो मिलता है खा पी कर गुजारा करते है।
उनमें से एक बच्चा जिसका नाम राजू था उसने बताया वो यहां पिछले कई सालों से आता है और उसका यहाँ बहुत खयाल रखा जाता हैं पर जब हमने उससे पूछा कि तुम नशा करते हो तो विश्वास मानिये वही नहीं उन मात्र 15-16 बच्चो में से 7 से 8 का जवाब हां में था।
खैर अब आते है मुद्दे पर हम आपको आखिर ये क्यों बता रहे है क्योंकि ये संस्था स्माइल रोटी बैंक के संचालक ने जब हमे बताया कि हमारी संस्था रेलवे स्टेशन के किनारे रोड पर रहने वाले बच्चो के लिए बनी हैं जिनके पास ना रहने को घर हैं,ना पहनने को कपड़ा,ना खाने को खाना और सबसे जरूरी उन्हें नशे की लत से दूर रखना।
आपको बताते चले कि इस संस्था के आदर्शों से रेलवे इतना प्रभावित हुआ कि उसने इस संस्था को गोरखपुर के रेलवे इंजीनियरिंग ऑफिस में 2 कमरा तक उप्लब्ध करा दिया। गौर करने वाली बात ये हैं कि ये संस्था जितने सालो से काम कर रही हैं उतने सालो में क्या वाकई कोई बच्चा किसी मुकाम पर पहुँच पाया या फिर वो अपनी नशे की लत को छोड़ पाया?
हालांकि जब हमने संचालक से इसके बारे में बात किया तो उनका कहना था कि पिछले 3 सालों में उन्होंने लगभग 400 से ज्यादा बच्चो की नशे की लत को छुड़वाया है जब हमने तरीका पूछा तो उन्होंने कहा ये उनका व्यक्तिगत तरीका हैं और वो इसको नहीं बताना चाहते।
जब हमने संचालक से सरकार द्वारा शिक्षानीति पर सवाल किया तो उनका साफ कहना था कि वो सरकार की शिक्षा नीतियों पर भरोशा नहीं करते। अगले ही दिन जब हमारी टीम रेलवे स्टेशन पहुँची तो हमे वही बच्चा मिला जिसका नाम राजू था और वो अन्य कुछ बच्चो के साथ नशा(सलूशन) कर रहा था। इन सब बातों का हमारे टीम के पास वीडियो भी है जो जल्द ही हम अपने दर्शकों को दिखाएँगे।आप कभी भी शाम होते ही स्टेशन और उसके आस पास के इलाकों में देख सकते है तमाम बच्चे जिनकी उम्र मात्र 6 से 14 साल के बीच होती है वो किस प्रकार नशे को अपना रहे हैं इसीलिए हमारा सवाल हैं आखिर कहां है वो संस्थाए जो कहती हैं कि वो ऐसे बच्चो के लिए बनी हैं,कहाँ हैं प्रशासन जिसे ये बच्चे नजर नहीं आते?
जरा सोचिए ऐसी तमाम संस्थाए जो लोगो के बीच सेवा के नाम पर जूठे वादे करते हैं और सहानुभूति जता कर पैसे ऐंठ लेते हैं तथा धीरे धीरे सरकारी सुविधाओं का भी उपयोग करने लगते हैं क्या वो सही हैं?