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राजनीति में जरूरी नहीं जीवन भर का राज!

आयुष द्विवेदी
गोरखपुर।

राजनीति में कब,क्या,कुछ हो जाए कुछ कहा नहीं जा सकता।इसका ताजा उदाहरण गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव है।याद करिये एक दौर था जब उमा भारती की मध्यप्रदेश के राजनीती में तूती बोलती थीं,तभी तो उमा के लहर का ही देन था कि मध्य प्रदेश की राजनीती में बीजेपी की शानदार वापसी हुई थी।लेकिन आज उमा भारती की क्या हैसियत है ये किसी से छुपा नहीं हैं।।आपको बताते चले यूपी में दो जगहों पर उपचुनाव हुए गोरखपुर और फूलपुर पर सबकी ज़ुबान पर बस नाम गोरखपुर का हैं,खैर गोरखपुर के लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की हार पर जानकारों का कहना है कि योगी आदित्यनाथ जिस तरीके से अपने गढ़ में हारे है उसे पार्टी में एक हलचल मच गई है और अब तो पार्टी में खुलकर लोग उनके खिलाफ भी बोलने लगे है।पूर्व सांसद रमाकांत यादव ने तो यहां तक कह दिया कि योगी जी सिर्फ एक जाति विशेष की बात करते है,जिससे ओबीसी और अनसूचित जाति के लोग इस चुनाव में नाराज हो गए।जिसका परिणाम हमारे आपके सामने हैं।लेकीन यहाँ समझना होगा कि जिस योगी को गुजरात,त्रिपुरा की जीत दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका थी,वो अपने ही घर में कैसे हार गए ?
राजनीतिज्ञ बताते है कि योगी अदितत्यनाथ उपचुनाव में मंदिर से ही किसी को प्रत्याशी बनाना चाहते थे,लेकिन शीर्ष नेतृत्व ने उनकी बात नहीं मानी और टिकट उपेंद्र दत्त शुक्ला को दे दिया।वही दूसरी तरफ बीजेपी के तरफ से गोरखपुर लोकसभा का प्रभारी अनूप गुप्ता को बनाया गया,जो की लाइम लाइट नेता नहीं है।
तो क्या इससे यहीं समझा जाए कि गोरखपुर लोकसभा के उपचुनाव में यह योगी की हार नहीं बल्कि बीजेपी की हार है।सूत्रों की माने तो बीजेपी में यह चर्चा जोरों पर है,कि शीर्ष नेतृत्व योगी के पर कतरने की कोशिश में हैं ऐसा इसलिए क्योंकि अभी से बीजेपी में और आरएसएस में यह चर्चा शुरू हो गयी हैं कि आखिर मोदी के बाद कौन?
और इस सवाल के जवाब में योगी सबसे फिट बैठते हैं।
क्योंकि योगी और मोदी दोनों हिंदुत्व का प्रखर चेहरा बन गए थे।मोदी के बाद योगी ने सभी बीजेपी के बड़े नेताओ को पीछे छोड़ दिया,वो चाहें रैलियों में भीड़ जुटाना हो या उस भीड़ को वोटो में तब्दील करना हो,जानकारों कि माने तो “यह हार बीजेपी की हार हैं, ना कि योगी की”।

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