बैंकों को ‘नटवरलालों’ ने लगाई 79,000 करोड़ रुपये की चपत

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देश के बैंक कर्ज लेकर भागने और धोखाधड़ी करने वालों के लिए मानो, सोने का अंडा देने वाली मुर्गी बन चुकी है। हाल ही में हुए खुलासे कुछ इसी तरफ इशारा करते हैं। बीते छह साल में नटवरलालों ने बैंकों के साथ 79,000 करोड़ रुपये की धोखाधड़ी की है।

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भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से उपलब्ध कराए गए ब्यौरे से यह बात साफ होती है कि वर्ष 2012-13 से वर्ष 2017-18 (दिसंबर 2017) तक विभिन्न बैंकों के साथ धोखाधड़ी के 27,246 मामले सामने आए हैं। यह सभी एक लाख से ऊपर की रकम के मामले हैं। इन मामलों में बैंकों को कुल 78,88,231़5 लाख रुपये (78,882 करोड़ रुपये) की हानि हुई है।

सामाजिक कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने आरबीआई से सूचना के अधिकार के तहत जानना चाहा था कि बैंकिंग व्यवस्था में धोखाधड़ी को रोकने के लिए क्या प्रयास किए गए हैं। साथ ही आरबीआई और अन्य बैंकों ने इससे निपटने के लिए कुल कितनी राशि खर्च की है।

आरबीआई ने बैंककारी विनियमन अधिनियम 1949 की धारा 28 का हवाला देते हुए धोखाधड़ी से संबंधित बैंकवार जानकारी देने से इनकार कर दिया। इसके बाद गौड़ ने आरबीआई के केंद्रीय लोकसूचना अधिकारी अर्नब कुमार चौधरी से यह जानने की कोशिश की कि आरबीआई ने धोखाधड़ी की रकम को लाखों में दर्शाया है, यह करोड़ों में कितनी होगी या इस राशि को 78,882 करोड़ रुपये माना जाए या नहीं। उन्होंने इसका कोई जवाब नहीं दिया है।

यह पूछे जाने पर कि इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन में ग्राहकों की पूरी सुरक्षा के लिए रिजर्व बैंक ने क्या-क्या उपाय किए गए हैं, और कौन-कौन से नियम बनाए हैं, आरबीआई ने बताया, “बैंकों की साइबर सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं से संबंधित सवरेत्तम कार्यप्रणाली को अपनाया गया है। इसके अलावा आरबीआई ने सभी बैंकों को एटीएम, डेबिट व क्रेडिट कार्ड की डुप्लीकेटिंग संबंधी धोखाधड़ियों से निपटने के विभिन्न उपाय बताए हैं।

देश के बैंकों को चपत लगाने वालों की स्थिति पर गौर करें तो, विजय माल्या 9000 करोड़, नीरव मोदी 11500 करोड़ का कर्ज लेकर विदेश भाग गया है। वहीं बैंकों ने पिछले पांच वर्षो में 3,68000 करोड़ रुपये डूबत खाते में डाल दिए हैं, यानी वह रकम एनपीए (नॉन परफॉर्मिग एसेट) में चली गई है।