पूरा देश धूमधाम से माना रहा है रंगो का त्यौहार होली

588

फागुन यानी होली और होली यानी मस्ती, पूरे उत्तर भारत में होली की खुमारी सिर चढ़कर बोलती है, लेकिन इसका असर भारत के हर कोने में दिखता है। होली एक ऐसा उत्सव है जिसमें दुश्मनों को भी गले लगाने की परंपरा है और यही भारत की संस्कृति भी है, जो एक भारत-श्रेष्ठ भारत की श्रेणी में रखती है।

Advertisement

भारत के अलग-अलग राज्य लेकिन रंग एक. प्यार का, उल्लास का और मस्ती का. होली, देश के हर कोने को प्यार के रंग में सराबोर कर देने वाला त्योहार। त्योहार एक लेकिन नाम अनेक। उत्तर प्रदेश और बिहार में फगुआ, फाग और लठ्ठमार होली जैसे कई नाम हैं। नंद की नगरी गोकुल, वृंदावन, मथुरा और बरसाना में होली की खुमारी महीनों पहले से सिर चढ़कर बोलने लगती है। यहां एक सप्ताह तक हर दिन होली का अलग-अलग रूप दिखता है। बरसाने की लठ्ठमार होली शुक्ल पक्ष की नवमी को शुरू होती है। उस दिन नंदगांव के लड़के गोपियों पर रंग डालते हैं और गोपियां उन्हें लाठियों से मारती हैं। वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर में फूलों की होली हमारी पंरपरा की बेहद खूबसूरत तस्वीर पेश करती है।

मध्यप्रदेश में भगोरिया, छत्तीसगढ़ में धुलेंडी और पांचवें दिन फिर रंग पंचमी. पंजाब में होला मोहल्ला तो पश्चिम बंगाल में दोल जात्रा. महाराष्ट्र में धुलवड तो तमिलनाडु में कमान पंडिगई। होली का रंग है कि उतरता ही नहीं।

इन सबके बीच भला बनारस की होली भला कैसे भूल जाएं. यहां एक तरफ रंग है तो दूसरी तरफ भांग. होली पर दोनों के बीच ग़ज़ब का दोस्ताना होता है। इस दिन कांजी, भांग और ठंढई का बोलबाला होता है। ढोल, मंजीरे, फाग, धमार चैती, ठुमरी की शान. होली में चारों ओर सुनाई देती है। त्रिपुरा, सिक्किम, मेघालय और नगालैंद में भी होली की अच्छी खासी धूम रहती है।

चटक रंगों में डूबकर सिर्फ एक ही अहसास बचता है. प्रेम का। अगर कुछ गिले-शिकवे बच जाएं तो वो कमी खीर, पूड़ी, गुझिये और मालपुए की मिठास से दूर हो जाती है। सचमुच, ये रंग-बिरंगी तस्वीर भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाती है, हमारा गौरव बढ़ाती है।