चंदन मद्धेशिया
देवरिया
समाजवादी आंदोलन के पुरोधा रहे,’मोहन सिंह’ का राजनीतिक जीवन बेहद संघर्ष में रहा था। दिल्ली की राजनीति से लेकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। समाजवादी विचारधारा की अलख जगाने को प्रतिबद्ध मोहन सिंह छात्र जीवन में ही राजनीतिक गतिविधियों में रुचि लेने लगे थे,छात्र रहते हुए ही वो 1967 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष चुने गए।वो जे.पी आंदोलन देश में सस्ती शिक्षा युवाओं को रोजगार देना है जैसे आंदोलनों में भी सक्रिय रहे।जेपी आंदोलन के दौरान वो देवरिया, बलिया तथा नैनी के जेल में 20 माह तक बंद भी रहे हैं।वर्ष 1977 में उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने जाने के बाद वह देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद की शोभा बने।खुद डॉक्टर लोहिया के विचारों से प्रेरित तथा युवाओं को भी उनके विचारों से सीख लेने जुझारू बनने किसी को देने वाले मोहन सिंह लोकसभा और राज्यसभा तक समाजवादी विचारधारा तक अलख जगाते रहें। बेलौस संयमित आक्रामक शैली में बोलने वाले मोहन सिंह में राम मनोहर लोहिया की प्रेरणा रची-बसी थी। लोकसभा या राज्यसभा में आम आदमी से जुड़े सवालों पर वह बेबाकी से बोलते थे।बताया जाता है कि संसद में उनके वक्तव्य के दौरान पक्ष विपक्ष के शीर्ष नेता उन्हें बेहद गंभीरता से सुनते थे।वर्ष 2007 में उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद के पुरस्कार से भी नवाजा गया था। राजनीतिक उद्देश्यों से उन्हें विदेशों की भी यात्राएं करनी पड़ी। संयुक्त राष्ट्र संघ में वे कई बार भारत के प्रतिनिधि की भूमिका में रहे।एक कुशल राजनेता होने के साथ-साथ मोहन सिंह की पहचान एक अच्छे लेखक के रूप में भी रही थी। 1994 में उनके द्वारा लिखी गई पुस्तक आधुनिक भारत के निर्माता जवाहरलाल नेहरू तथा भारतीय संविधान के लिए उन्हें गणेश शंकर विद्यार्थी पुरस्कार से भी पुरस्कृत किया गया। इसके अलावा उन्होंने अपने प्रेरणा स्रोत रहे,डॉ राम मनोहर लोहिया व डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के जीवन पर भी पुस्तक के माध्यम से अपने विचार व्यक्त किए।