कहानी फूलपुर लोकसभा सीट की जहाँ से विपक्ष की नींव पड़ी

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आयुष द्विवेदी

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11 मार्च 2017 को यूपी विधानसभा के रिजल्ट आने के बाद भाजपा ने गोरखपुर के सांसद योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री तो फूलपुर के सांसद को उप मुख्यमंत्री बना दिया ।

लोकसभा से विधानसभा की तरफ इन दोनों नेताओं की रुख के वजह से इन दोनों सीटो पर 11 मार्च को चुनाव होने वाले है । देखा जाए तो यह दोनों सीट 2019 के आमचुनाव के पहले का सेमीफाइनल है और इसके लिए सभी पार्टियों ने एड़ी चोटी लगा दिया है।

दोनों सीटो का देश के राजनीति में इतिहास रहा है। आज हम बात करेंगे फूलपुर लोकसभा की यह सीट भी काफी हाई प्रोफाइल मानी जाती रही है और हो भी क्यों ना विपक्ष को अस्तित्व में लाने में फूलपुर का बहुत बड़ा योगदान है। 1952 के पहले लोकसभा चुनाव में इस सीट को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने चुना और वह लगातार 2 बार यहा से सांसद रहे। लेकिन 1962 के चुनाव में पंडित नेहरू के सामने भारतीय समाजवादी आंदोलन से नेता बने राम मनोहर लोहिया मैदान में थे और यह चुनाव फूलपुर के इतिहास में काफी यादगार रहा है ।क्योंकि एक तरह से देश में विपक्ष क्या होता है इसका बोध कराया राममनोहर लोहिया ने पंडित नेहरू के सामने चुनाव लड़कर विपक्ष को अस्तित्व में लाया ।हालाकि पंडित जी के सामने लोहिया की बड़ी हार हुई और वह भी कुल 60 हजार से ऊपर। भारतीय लोकतंत्र के लिए यह एक कड़वा सच है कि राम मनोहर लोहिया कभी खुद चुनाव नहीं जीत पाए लेकिन उनकी विचारधारा को आत्मसात करने वाले नेता मुलायम सिंह यादव सहित देश के कई बड़े नेता मुख्यमंन्त्री सहित देश के राजनीती में महत्वपूर्ण पद पर है और वह देश की दशा और दिशा तय कर रहे है । लोहिया ने देश में विपक्ष का मतलब बताया। क्योंकि उस दौर में कांग्रेस के अलावा लोग कुछ सोच ही नहीं पाते थे या यूँ कहें कि कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं था। विपक्ष की जोरदार एंट्री लोहिया के शिष्य जनेश्वर मिश्र ने फूलपुर लोकसभा जीतकर साकार किया वो भी लोहिया के मौत के ठीक 2 साल बाद। सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर जीतने वाले जनेश्वर मिश्र लोहिया को इससे बडी श्रधांजलि दे ही नहीं सकते। हालांकि यह जीत उप चुनाव में हुई थी। इस जीत के बाद 1971 में के चुनाव में इंद्रा गांधी की लहर थी और उनके युवा नेता बीपी सिंह उस लहर में चुनाव जीत गए लेकिन राजनीती का करिश्मा देखिए कांग्रेस के लहर में जीते बीपी सिंह ने 1989 में राजीव गांधी को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया ।

विपक्ष के लिए उप चुनाव ने उस दौर में भी विपक्ष को सत्ता के दहलीज पर ला खड़ा किया था और अब देखने वाली बात होगी की विपक्ष के लिए यह चुनाव अपना सुनहरा अतीत दोहरा पाता है।